High court news:digi desk/BHN/ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया राज्य के विभिन्न जिलों में स्थानीय जिला प्रशासन की ओर से एंटी माफिया कार्रवाई को लेकर ‘कॉमन ऑर्डर जारी नहीं किया जा सकता। लिहाजा, जनहित याचिका का इस निर्देश के साथ पटाक्षेप किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायतों के साथ अदालत की शरण लेने स्वतंत्र हैं। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता छिंदवाड़ा निवासी विधि छात्र अभिषेक मिश्रा की ओर से पक्ष रखा गया। दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद-300 में साफ किया गया है कि राज्य कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। इसके बावजूद एंटी माफिया कार्रवाई के नाम पर संपत्तियां उजाड़ी जा रही हैं। इससे पूर्व न तो नोटिस जारी किए जाते हैं और न ही सुनवाई का अवसर दिया जाता है।
पूछा-‘रैनबसेरा तोड़ने से पहले क्यों नहीं दिया सुनवाई का अवसर’
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने रैनबसेरा तोड़ने से पहले सुनवाई का अवसर न दिए जाने के रवैये पर जवाब-तलब कर लिया है। इस सिलसिले में राज्य शासन व कलेक्टर सहित अन्य को नोटिस जारी किए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगा। इस बीच यथास्थिति बरकरार रखने की व्यवस्था दी गई है। न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी सुदर्शन प्रसाद की ओर से पक्ष रखा गया। दलील दी गई कि गौर नदी के पास स्थित रैनबसेरा तोड़ दिया गया।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि उसने रजिस्टर्ड सेलडीड के माध्यम से पांच अक्टूबर, 1988 को यह सम्पत्ति खरीदी गई थी। 25 सितंबर, 2012 को तहसीलदार द्वारा सीमांकन व बटांकन आदेश जारी किए। जिसके आधार पर बैंक से कर्ज लेकर चिन्हित भूमि पर रैनबसेरा बनाया गया। जिसके बाद राजस्व विभाग की ओर से भूमि के शासकीय होने का दावा किया गया। यही नहीं बिना सुनवाई का अवसर दिए एक रोज जिला प्रशासन की एंटी माफिया सेल से निर्माण ध्वस्त कर दिया।