Court News:digi desk/BHN/ उज्जैन में11 साल की पुत्री के साथ 6 माह तक दुष्कर्म करने वाले पिता को बुधवार को कोर्ट ने शेष प्राकृतिक जीवन काल तक जेल में रहने की सजा सुनाई है। कोर्ट ने टिप्पणी में मनुस्मृति के श्लोक का उल्लेख किया है। श्लोक का अर्थ है कि जो अपराध करें वह दंडनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरु, पत्नी, मित्र या पुरोहित ही क्यों ना हो।
उप संचालक अभियोजन डॉ. साकेत व्यास ने बताया कि 6 अप्रैल 2019 को चिमनगंज थाने में 11 साल की बालिका ने शिकायत दर्ज करवाई थी कि वह पांचवी कक्षा की छात्रा है। उसके पिता ड्रायवर है तथा कभी-कभी 10 से 12 दिन तक घर से बाहर रहते है।
बालिका ने बताया कि उसके पिता ने छह माह तक लगातार कई बार उससे दुष्कर्म किया। पिता ने धमकी दी थी कि अगर किसी को यह बात बताई तो वह उसे जान से मार देगा। तकलीफ अधिक होने पर बालिका ने मां को बताया तो मां ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को इसकी जानकारी दी।
जो भी अपराध करे वह दंडनीय, चाहे पिता ही क्यों ना हो
दोषी पिता ने कोर्ट से निवेदन किया था कि उसकी उम्र व पहले अपराध को देखते हुए सजा पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाए। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की है कि मनुष्य ने जब समाज के अस्तित्व व महत्व को मान्यता दी तब उसके कर्तव्यों व अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दंड व्यवस्था करने की आवश्यकता उत्पन्ना हुई, यही कारण है कि विभिन्ना युगों में विभिन्ना स्मृतियों की रचना हुई, जिनमें मनुस्मृति को विशेष महत्व प्राप्त है। मनुस्मृति में 12 अध्याय तथा 2500 श्लोक है। प्रस्तुत प्रकरण के संदर्भ में मनुस्मृति के श्लोक के उद्धरण संदर्भनीय है।
“”पिताचार्य: सु्माताभार्यापुत्र: पुरोहित:।
नादंडयोनामरोज्ञास्ति य: स्वधर्में न तिष्ठति””
अर्थात- जो भी अपराध करे वह अवश्य दंडनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरु, पत्नी, मित्र या पुरोहित ही क्यों ना हो।