OBC Reservation case: digi desk/BHN/जबलपुर/मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग, ओबीसी आरक्षण 14 फीसद से अधिक करने पर पूर्व में लगाई गई रोक हटाने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने साफ किया कि अंतिम निर्णय से पूर्व आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसद से अधिक नहीं की जा सकती। इस अभिमत के साथ ही पूर्व में लगाया गया स्टे हटाने के लिए राज्य सरकार की ओर से दायर अंतरिम आवेदन निरस्त कर दिया। साथ ही मामले की फाइनल हियरिंग 20 सितंबर को निर्धारित कर दी।
जबलपुर निवासी असिता दुबे, राजस्थान के कांतिलाल जोशी सहित 29 की ओर से याचिकाएं दायर कर अधिवक्ता आदित्य संघी, ब्रहमेंद्र पाठक व ब्रह्मानंद पांडे ने कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी वाले फैसले में स्पष्ट किया है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने नौ सितंबर, 2020 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गए 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को निरस्त कर दिया है। इसके बावजूद ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिए जाने से आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार कर गई है। वहीं ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से भी याचिका दायर कर 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का समर्थन किया गया।
सरकार की मांग दरकिनार
बुधवार को राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने पक्ष रखा। राज्य सरकार की ओर से एक अंतरिम आवेदन पेश कर ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से 27 फीसद तक बढ़ाने पर हाई कोर्ट द्वारा 19 मार्च, 2019 को लगाई अंतरिम रोक हटाने पर बल दिया गया। याचिकाकर्ताओं के वकील आदित्य संघी ने इसका विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि सुको के इंदिरा साहनी सहित कई न्यायिक दृष्टांतों का हवाला देने के बाद कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण 14 फीसद से अधिक करने पर रोक लगाई थी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने सरकार की अंतरिम अर्जी खारिज कर दी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के तर्क
मध्य प्रदेश शासन की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि शिक्षक भर्ती व पीएससी के मामले में हाई कोर्ट अपने पूर्व के स्टे ऑर्डर को मॉडीफाई करते हुए भर्ती की अनुमति प्रदान करे। निर्धारित शर्त के मुताबिक सभी नियुक्तियां विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि ढाई साल से चली आ रही रोक को इस तरह शिथिल करना अतार्किक होगा, इससे बेहतर तो यही होगा कि मामले में फाइनल हियरिंग पूर्ण कर फैसला सुनाया जाए। कोर्ट ने तर्क से सहमत होकर मामले की सुनवाई तीन श्रेणियों में विभक्त करके किए जाने की व्यवस्था दे दी।
सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायदृष्टांत रेखांकित
इससे पूर्व श्री मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायदृष्टांत रेखांकित करते हुए यह तर्क भी रखा कि जब विधायिका कोई अधिनियम बनाती या संशोधित करती है तो सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट विचारण का अधिकार तो रखते हैं किंतु उसे लागू किए जाने पर संवैधानिक व्यवस्था अंतर्गत रोक नहीं लगाई जा सकती।
इस तरह चली सुनवाई
यह मामला लंच अवधि के ठीक पहले दोपहर 1.25 बजे सुनवाई के लिए लगा। 1.30 बजे से लंच का समय शुरू हो गया। लिहाजा, सुनवाई 2.30 बजे के लिए निर्धारित कर दी गई। इस तरह तीन घंटे तक सुनवाई मैराथन चलती रही।
ओबीसी मामले की सुनवाई 20 सितंबर के लिए बढ़ाई
शिक्षक भर्ती व पीएससी भर्ती में 14 फीसद से अधिक आरक्षण पर रोक बरकरार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग, ओबीसी आरक्षण मामले की सुनवाई 20 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान राज्य शासन की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि शिक्षक भर्ती व पीएससी के मामले में हाई कोर्ट अपने पूर्व के स्टे ऑर्डर को मॉडीफाई करते हुए भर्ती की अनुमति प्रदान कर दी जाए। जो भर्तियां की जाएंगी वे विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी व ब्रहमेंद्र पाठक ने इस मांग पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ढाई साल से चले आ रहे स्टे ऑर्डर को मॉडीफाई करने के स्थान पर अब फाइनल डिसीजन होना चाहिए। लिहाजा, अंतिम स्तर की बहस को गति देकर कोर्ट निर्णय पर पहुंचे। हाई कोर्ट ने इस तर्क से सहमत होकर सभी पक्षों को अपने-अपने तर्क रखने 20 सितंबर की तिथि निर्धारित कर दी। यही नहीं इंटरवीनर अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का पक्ष सुनने के बाद ओबीसी रिजर्वेशन से संबंधित मामलों को तीन वर्गों में विभाजित करके सुनवाई की व्यवस्था भी दे दी। एक वर्ग 27 फीसद आरक्षण के समर्थन से संबंधित होगा, जबकि दूसरा विरोध वाली याचिकाओं का। तीसरा वर्ग संशोधित अधिनियम को चुनौती से संबंधित होगा। कोर्ट ने बहस के लिए समयावधि का भी निर्धारण कर दिया है। याचिकाकर्ताओं को 45 मिनट से अधिक समय नहीं दिया जाएगा। जबकि राज्य सरकार के लिए समय की कोई पाबंदी नहीं होगी।