Thursday , November 28 2024
Breaking News

Corona Virus : डीआरडीई विज्ञानी का निष्कर्षः वायरस गले से नीचे उतर जाए ताे रेमडेसिविर-प्लाज्मा थेरेपी अनुपयाेगी

Corona Virus: digi desk/BHN/ ग्वालियर/काेराेना संक्रमण के इलाज के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन आैर प्लाज्मा काे लेकर मची आपाधापी के बीच डीआरडीई (रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना) के बायाेटेक्नाेलॉजी विभाग के विज्ञानी डॉ रामकुमार धाकड़ ने एक अध्ययन किया है। उनका निष्कर्ष है कि वायरस का प्रभाव जब तक गले में रहता है, तब तक ही रेमडेसिविर आैर प्लाज्मा थेरेपी कारगर हाेती है। संक्रमण गले से फेफड़ाें तक पहुंच जाए आैर मरीजाें की स्थिति गंभीर हाे जाए तब ये दाेनाें अनुपयाेगी हाे जाते हैं। डॉ धाकड़ बताते हैं कि निजी अस्पतालाें में डॉक्टर गंभीर मरीजाें काे भी रेमडेसिविर इंजेक्शन लगा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि उन पर यह इंजेक्शन काम नहीं करता, बल्कि इसके दुष्प्रभाव ही अधिक सामने आ रहे हैं।

ग्वालियर विभिन्न अस्पतालाें में करीब ढाई साै मरीजाें के इलाज में इस्तेमाल किए गए रेमडेसिविर व उसके प्रभाव के अध्ययन पर डॉ धाकड़ ने पाया कि इनमें से सिर्फ पांच से दस फीसद मरीजाें काे ही बचाया जा सका। इन मामलाें में संक्रमण फेफड़ाें तक पहुंच गया था। दरअसल रेमडेसिविर व प्लाज्मा फेफड़े में संक्रमण काे राेकने का काम नहीं करता। गंभीर मरीजाें काे स्टेरायड( मिथाइल प्रेडनीसाेलाेन) के सहारे ठीक किया गया।

ये है रेमडेसिविर व प्लाज्मा का कामः रेमडेसिविर इंजेक्शन एक एंटीवायरल ड्रग है। इसे इबोला वायरल व हेपेटाइटिस सी के संक्रमण को रोकने बनाया गया था। इसका प्रयोग कोरोना संक्रमण को रेाकने में किया गया। डब्ल्यूएचओ ने भी रेमडेसिविर पर भरोसा न जताकर उसे एक ट्रायल ड्रग माना व गंभीर मरीजों पर उपयोग न करने की सलाह भी दी थी। वहीं आइसीएमआर ने भी सितंबर 2020 में जारी अपनी रिपाेर्ट में प्लाज्मा थेरेपी काे काेराेना के इलाज में अनुपयाेगी बताया था। प्लाज्मा थेरेपी राेग प्रतिराेधक क्षमता बढ़ाती है, लेकिन फेफड़े में संक्रमण हाेने पर इसकी उपयाेगिता नहीं बचती। वह संक्रमण कम नहीं कर सकती।

स्टेरायड घटाता है फेफड़े की सूजनः अध्ययन में सामने आया कि मरीज काे यदि संक्रमण की शुरुआत में रेमडेसिविर दिया गया ताे उसने काम किया। संक्रमण जब फेफड़े तक पहुंच जाता है ताे वह उनमें सूजन पैदा कर देता है। एेसे में अॉक्सीजन रक्त तक नहीं पहुंच पाती आैर कार्बन डाई अॉक्साइड बाहर नहीं निकल पाती। इससे मरीज का अॉक्सीजन लेवल गिरता है आैर कई बार माैत हाे जाती है। फेफड़े में आई सूजन काे घटाने का काम स्टेरायड करता है। डॉ धाकड का कहना है कि इस स्टेरायड का समर्थन डब्ल्यूएचआे ने गंभीर मरीजाें के लिए किया है। डॉ धाकड़ के मुताबिक डब्ल्यूएचआे ने रेमडेसिविर का चार बार परीक्षण किया, इसके बाद इसके प्रयाेग काे नकार दिया था। ब्रिटेन में मिथाइल प्रेडनीसाेलाेन का प्रयाेग अॉक्सीजन सपाेर्ट पर गंभीर मरीज पर किया ताे माैत के आंकड़ाें में में एक तिहाई कमी पाई गई। अध्ययन में यह भी पाया कि स्टेरायड डेक्सामेथासाेन की तुलना में मिथाइल प्रेडनीसाेलाेन फेफड़े के टिश्यु में पहुंचकर उसकी सूजन घटाने में अधिक कारगर है।

 

About rishi pandit

Check Also

Katni: दो राज्यों से 30 लाख का गांजा लेकर कटनी पहुंचीं 4 महिला तस्कर गिरफ्तार, सभी को जेल भेजा

कटनी। कटनी जिले में एक बार फिर गांजा तस्करी पर बड़ी कार्रवाई करते हुए पुलिस …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *