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Hartalika Teej 2023: जानिए कब है हरतालिका तीज, तिथि, मुहूर्त और पौराणिक कथा

Vrat tyohar hartalika teej 2023 know when is hartalika teej its date time and mythological story: digi desk/BHN/भोपाल/ हिन्दू धर्म की महिलाओं के लिए हरतालिका तीज एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भारत के अलावा नेपाल में भी मनाया जाता है। इसमें महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरे दिन निराहार-निर्जल व्रत करती हैं। कुंवारी कन्याएं भी मनवांछित पति के लिए ये व्रत करती हैं। हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है और इसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों में भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। आइये जानते हैं इस व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त…।

हरतालिका तीज: शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज व्रत: सोमवार, 18 सितंबर 2023

तृतीया तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 11:08 बजे

तृतीया तिथि समाप्त: 18 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 12:39 बजे

प्रातः काल शुभ मुहूर्त – 18 सितंबर, 06:07 बजे से 08:34 बजे तक

हरतालिका तीज व्रत का महत्व

हरतालिका तीज व्रत, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन, भगवान शिव और देवी पार्वती की रेत की प्रतिमाएं बनाई जाती है और उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। इसलिए महिलाएं सौभाग्य, संतान और पति की दीर्घायु के लिए हरतालिका तीज व्रत करती है। इस दौरान महिलायें पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं के सौभाग्य में वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

हरतालिका तीज व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वती के पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने प्रस्ताव रखा। लेकिन उन्होंने इससे मना कर दिया क्योंकि वो भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। एक सखी की सलाह पर देवी पार्वती वन चली गईं और भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या करने लगीं। भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तब से इस दिन को हरतालिका तीज से रूप में मनाया जाने लगा।

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