Chhattisgarh jagdalpur cg election 2023 sarv adivasi samaj to contest assembly elections to spoil electoral equation of bjp congress: digi desk/BHN/जगदलपुर/छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा का चुनावी गणित बिगाड़ने के लिए सर्व आदिवासी समाज इस साल नवंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी खड़ा करेगा। पिछले दिनों हुए भानुप्रतापपुर उपचुनाव में समाज के समर्थित प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम को 23417 वोट मिले थे। कुल मतदान का लगभग 16 फीसद मत प्राप्त कर कोर्राम तीसरे नंबर पर रहे थे।
आदिवासी आबादी वाली सीटों पर समाज की नजर
अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित विधानसभा की 29 सीटों के साथ ही अनारक्षित वर्ग की ऐसी सीटें, जहां आदिवासी आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है, वहां भी सर्व आदिवासी समाज प्रत्याशी उतार सकता है। सुरक्षित व 30 फीसद से अधिक आदिवासी आबादी वाली सीटों को मिलाकर लगभग 50 से 55 सीटों पर समाज की नजर है। सर्व आदिवासी समाज की प्रदेश इकाई की ओर से राजनीतिक दल के गठन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है।
दल की मान्यता के लिए एक माह पहले ही प्रस्ताव भारत निर्वाचन आयोग को भेजा जा चुका है। सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। वे इंदिरा गांधी और नरसिंहराव सरकार में मंत्री और पांच बार के सांसद रहे हैं। उनकी पत्नी छबीला नेता भी सांसद रहीं हैं। उद्योग विभाग में उच्च पद से सेवानिवृत्त डीएस रावटे संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष है।
बस्तर पुलिस में डीआइजी के पद से सेवानिव़ृत्त अकबर राम कोर्राम भी सर्व आदिवासी समाज से जुड़े है। वे शहडोल, बिलासपुर, रायपुर सहित कई जिलों में एसपी रहे है। छत्तीसगढ़ में गोंड समाज के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं। दावा किया जाता है कि अजजा वर्ग के कर्मचारियों-अधिकारियों के संगठन और युवा वर्ग दोनों का भी इस अभियान में पूरा सहयोग समाज को मिल रहा है।
बस्तर संभाग का दौरा कर तलाशी संभावना
सर्व आदिवासी समाज के चुनाव लड़ने को लेकर समाज के प्रमुख लोगों से चर्चा के लिए एक सप्ताह पहले रायपुर से समाज के प्रांतीय पदाधिकारी बस्तर संभाग का दौरा कर लौटे हैं। अरविंद नेताम का कहना है कि आदिवासी समाज कांग्रेस और भाजपा का वोट बैंक बनकर रह गया है क्योंकि इनके पास तीसरा विकल्प नहीं है।
चुनाव लड़ने के समाज के निर्णय पर सवाल के जवाब में अरविंद नेताम ने कहा कि छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसद आबादी आदिवासियों की है। बस्तर और सरगुजा संभाग में इस वर्ग की आबादी 65 फीसद से अधिक है। सुरक्षित सीटों से चुनाव जीतने वाले विधायक राजनीतिक दलों के साथ प्रतिबद्धता के कारण समाज के मुद्दों पर मुखर होकर बात नहीं कर पाते हैं।
प्रदेश में तीसरा राजनीतिक विकल्प नहीं होने से कांग्रेस और भाजपा के बीच आदिवासी समाज का वोट बंट जाता है। आरक्षण का मामला हो या पेसा कानून के नियमों में बदलाव अथवा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के हनन की बात हो समाज के लोग यदि कांग्रेस-भाजपा से अलग तीसरे दल से जीतकर आएंगे तो ज्यादा मुखर होकर बात रख सकेंगे।