Pitra Dosh: digi desk/BHN/ हमारे पूर्वज मृत्योपरांत पितृ की संज्ञा प्राप्त करते हैं। पितृ हमारे और देवता के बीच की कड़ी हैं। अगर वे प्रसन्न होते हैं तो जातक सुखी जीवन जीता है। अगर किसी कारण ये अप्रसन्न हो जाते हैं तो मनुष्य को कष्ट झेलने पड़ते हैं। पितृ या तो मोक्ष को प्राप्त करते हैं, या पृथ्वी लोक पर पुनः जन्म लेते हैं। यदि परिवार के सभी पितरों का पुनर्जन्म या मोक्ष हो गया हो तो कुछ समय के लिए परिवार के कोई पितृ नहीं होते। अंत परिजनों को चाहिए कि जब तक वे पृथ्वी लोक में हैं। तब तक तर्पणादि से उनकी सेवा करें।
पितृ दोष अपने कर्मों के कारण न हो करके, माता-पिता या पूर्वजों के कर्मों के कारण होते हैं। यह दोष जातक के जन्म कुंडली में विद्यमान होता है, जबकि कर्म जन्म के बाद ही बनते हैं। पितृदोष ऐसा दोष है, जिसका कारण समझ में नहीं आता। जन्मपत्री में शुभ दशा के योग होने पर भी जातक को शुभ फल प्राप्त नहीं होते। घर में कलह, अशांति, धन की कमी और बीमारी लगी रहती है। विवाह में अड़चन आती है। जब भी किसी प्रकार की समस्या बार-बार आती है। वहीं कोई कारण नजर नहीं आता हो तो हमें पितृ दोष की शांति करवानी चाहिए।
पितृ दोष के लक्षण
1. परिवार में आकस्मिक निधन या दुर्घटना होना।
2.बीमारी होना और लंबे समय तक चलना।
3. परिवार में विकलांग या अनचाहे बच्चे का जन्म होना।
4. बच्चों द्वारा असम्मान व प्रताड़ना का व्यवहार करना।
5. गर्भ धारण न होना।
6. परिवार के किसी सदस्य का विवाह न होना।
7. बुरी आदतों की लत लग जाना।
8. परिवार में किसी बात को लेकर झगड़ा होना।
पितृ दोष उपाय
1. श्राद्ध पक्ष में तर्पण और पिंडदान करें। ब्राह्मण को भोजन कराएं।
2. मृत्युतिथि नहीं मालूम है तो श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के दिन तर्पण करें।
3. सोमवाती अमावस्या को पितृभोग दें। गोबर के कंडे जलाकर उसपर घी की आहूति दें।
4. सूर्योदय के समय भास्कर को जल अर्पित करें। गायत्री मंत्र का जप करें।
5. पीपल के पेड़ पर जल, फूल, दूध व काले तिल चढ़ाकर पूर्वजों को याद करें।
6. गाय को गुड़ खिलाएं।
7. नारायणबलि पूजा और पितृ गायत्री का अनुष्ठान करवाएं।
पितृ पूजा के लिए आवश्यक निर्देश
1.पितरों को नॉन वेज भोजन अर्पित न करें।
2. पूजा के दिन मांस का सेवन न करें।
3. पितृ पूजा में स्टील, लोहा, प्लास्टिक, शीशे के बर्तन का प्रयोग न करें।
4. पितृ पूजा करने वाले व्यक्ति की पूजा में व्यवधान न डालें।
5. बुजुर्गों का सम्मान करें और पितृ पूजा में घंटी न बजाएं।
6. पितरों के निमित्त किए जाने वाले गौदान से पितृ तृप्त होते हैं।
7. पितृ कर्म हेतु वर्ष में 12 मृत्यु तिथि, 12 अमावस्या, 12 पूर्णिमा, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग, 24 एकादशी व श्राद्ध के 15 दिन मिलाकर 99 दिन होते हैं।