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“हर घर तिरंगा नहीं”, हर “दिल” तिरंगा होना चाहिए

विशेष संपादकीय

  ऋषि पंडित
(प्रधान संपादक)

15 अगस्त 2022 को भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। यह स्वतंत्रता दिवस इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण

हो गया है क्यूंकि देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और सर्वधर्म सम्मान एवं अनोखी संस्कृतियों से परिपूर्ण हमारा भारत विकास की अनंत संभावनाओं को लेकर अपनी स्वतंत्रता की 76 वीं वर्षगांठ के साथ आन-बान और शान से विश्व के आसमान पर अपना तिरंगा लहरा रहा है। भारत सरकार ने देशवासियों के लिए आजादी के इस पर्व को और सम्मान देने के लिए विकास की महत्वपूर्ण गाथा लिखने के साथ-साथ हर घर तिरंगा अभियान बीते कई दिनों से चला रखा है। इस अभियान की फलश्रुती यह है कि हर भारतवासी आजादी की शान के प्रतीक इस तिरंगे को पूरे सम्मान के साथ अपने घरों में भी लहरा रहे हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष में चहुंओर आसमान में लहराते तिरंगे की धूम है, मानों मकर सक्रांति के पर्व पर आसमान छूने की आतुरता लिए पतंगों की तरह भारतीय तिरंगा भी आकाश को हरितिमा, शांति एवं धार्मिक गौरव की चादर में समेट लेना चाहता हो। चारों तरफ गगनचुंबी इमारतों में विद्युत प्रकाश संयोजन से ऐसे दृश्य दिखाई दे रहे हैं जैसे बुलंदियों की गाथा को तिरंगे के रंगों ने अपनी गोद में समेट लिया हो, ऐसे दृश्य वाकई अद्भुत और बेमिसाल हैं। 68 साल पहले भारत विदेशी शासन की बेड़ियों से मुक्त हुआ था। 15 अगस्त 1947 को हमारे स्वतंत्रता संग्राम ने एक खास मंजिल तय की, लेकिन वह आखिरी मंजिल नहीं थी। भारत की आजादी की लड़ाई की यही विशेषता थी कि विदेशी राज के खात्मे को कभी अंतिम उद्देश्य नहीं माना गया, बल्कि उसे उन सपनों को साकार करने का माध्यम समझा गया, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखे थे।

इन सपनों के बनने की लंबी कथा है। इसकी शुरुआत यह समझ बनने से हुई कि अंग्रेजों के शोषण से भारत भूमि के सभी जन-समूह दरिद्र हुए हैं। स्वाभाविक रूप से स्वतंत्रता को देश के आर्थिक दोहन से मुक्ति और सभी जन-समुदायों की खुशहाली के रूप में समझा गया। हमारे तब के मनीषी भारत की बहुलता और विभिन्नता से परिचित थे। अत: उदारता और सबको साथ लेकर चलने का तत्व उन्होंने नवोदित भारतीय राष्ट्रवाद के विचार से जोड़ा। महात्मा गांधी के आगमन के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में जन-भागीदारी की शुरुआत हुई।

हजारों लोगों की प्रत्यक्ष सहभागिता ने वह जन-चेतना पैदा की, जो आगे चल कर हमारे लोकतंत्र का आधार बनी। लोकतंत्र की प्रगाढ़ होती आकांक्षाओं के साथ पारंपरिक रूप से शोषित-उत्पीड़ित समूहों को न्याय दिलाने का संकल्प राष्ट्रवाद के आधारभूत मूल्यों में शामिल हुआ। अत: इन जन-समुदायों को तरक्की के विशेष अवसर देने का वादा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने किया।
मगर बात यहीं तक सीमित नहीं थी। जब आजादी दूर थी, तभी इस आंदोलन के नेता देश की भावी विकास नीति पर चर्चा कर रहे थे।

इस बिंदु पर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के मतभेद जग-जाहिर हैं, परंतु रेखांकित करने का पहलू यह है कि प्रगति का एजेंडा स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न अंग बना और जब आजादी आई तो देश ने उस एजेंडे को अपनाया। देश के बंटवारे, सांप्रदायिक उन्माद, बड़े पैमाने पर खून-खराबे और आबादी की अदला-बदली की त्रासदी के बावजूद यह एजेंडा ओझल नहीं हुआ। बल्कि प्रगति के सपने ने तब उस दर्द से उबरने में भारतवासियों की मदद की। आज यह इसलिए याद करने योग्य है, क्योंकि उस सपने के कई हिस्से आज भी अधूरे हैं। इस दरमियान कितनी सरकारें आईं और गईं पर सपने अधूरे ही रहे…!

76 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यह हम सबके लिए आत्म-निरीक्षण का प्रश्न है कि आजादी से जो बोध होता है, क्या वह सभी भारतवासियों को उपलब्ध है? उत्सव और प्राप्त उपलब्धियों पर गौरव के क्षणों में भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी करोड़ों देशवासी बुनियादी सुविधाओं एवं गरिमामय जीवन के लिए अनिवार्य अवसरों से वंचित हैं। जब तक ऐसा है, स्वतंत्रता सेनानियों का सपना साकार नहीं होगा। तब तक उनका बलिदान हमारी अंतर्चेतना पर बोझ बना रहेगा। बीते कुछ वर्षों में मिलीं हमारी सफलताएं गर्व करने योग्य हैं, लेकिन आज के दिन हमें केवल उन पर नहीं, बल्कि उन विफलताओं पर भी ध्यान देना चाहिए, जिन पर विजय पाए बिना हमारा स्वतंत्रता संग्राम अपनी अंतिम मंजिल तक नहीं पहुंच सकता। कई लक्ष्य ऐसे हैं जो अभी हमारी पहुंच से दूर बने हुए हैं उन्हें हासिल करना जरूरी है।

सभी तक पहुंचने वाली आजादी का जो सपना हंसते- हंसते फांसी के फंदों को चूम लेने वाले हमारे रणबांकुरों ने देशवासियों के लिए देखा था, अवसरवाद की राजनीतिक चकाचौंध में वह कहीं दम तोड़ता हुआ दिख रहा है। इस पड़ाव पर हम आगे के लिए संकल्प साधें और बढ़ें नई मंजिलों की ओर। हम साथ मिलकर चल रहे हैं तो चुनौतियों को हल करने के रास्ते तलाशना भी सीखते जाएंगे। बस इसके लिए शीर्ष पर बैठे राजनेताओं को दूरदर्शी और घरों पर तिरंगा लहराते समूचे देशवासियों को प्रत्येक परिस्थितियों में अपने देश के सम्मान के लिए कुछ भी कर गुजरने का आत्मबल चाहिए।
इसके लिए “हर-घर तिरंगा” नहीं अपितु प्रत्येक भारतवासी के हृदय में तिरंगा होना चाहिए।

आइए, देश की आजादी की 76 वीं वर्षगांठ पर हम सब इस बात के लिए संकल्पित हो जाएं कि परिस्थिति चाहे हमारी कितनी भी अग्निपरीक्षा लेने पर उतारू क्यूं ना हों, हम देश के सम्मान को कभी भी और कहीं भी कलंकित नहीं होने देंगे। तभी शहीदों के सपनों का यथार्थ भारत हम सबके सामने होगा।
आप सभी को “भास्कर हिंदी न्यूज़ परिवार” की ओर से स्वतंत्रता दिवस की आत्मिक शुभकामनाएं। 

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