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Satna: नौकरी के साथ-साथ विषमुक्त जैविक खेती कर तीन युवा कर रहे किसानो को प्रेरित

(खुशियों की दास्तां)

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ समय के साथ साथ खुद को बदल देना ही समझदारी होती है। सम्पूर्ण मानवजाति को बढ़ती हुई बीमारियों एवं अनुवांशिक बीमारियों से बचाने के लिए अब प्राकृतिक खेती की ओर विशेषकर युवा किसानो का झुकाव बढ़ता जा रहा है। सतना जिले के तीन नौकरीशुदा युवक संजय शर्मा, हिमांशु चतुर्वेदी, अभिनव तिवारी के साझे प्रयास से ‘‘कामधेनु कृषक कल्याण समिति’’ के माध्यम से स्थानीय जैतवारा-बिरसिंहपुर रोड में एक मॉडल जैविक खेत का विकास किया जा रहा है। इस संस्था के माध्यम से कृषि के पारंपरिक तरीके से हट कर प्राकृतिक एवं गौ आधारित खेती माध्यम से कृषि करने का हुनर भी सिखाया जा रहा है।

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये तीनों एक ही विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर कृष्ण नगर के पूर्व छात्र रहे है। इनमें से एक पश्चिम मध्य रेल्वे में ट्रेन मैनेजर है। वही एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं और एक बीएसएनएल में एसडीओ हैं। तीनों नौकरी के साथ-साथ अपने कृषक पूर्वजों की मूल पहचान और समाज मे बदलाव के उद्देश्य को लेकर बचे समय मे जैविक खेती और कृषकों को उन्नत करने में लगे हुए है। विदित है कि किसी भी खेत को शत-प्रतिशत जैविक खेत एक वर्ष में नही किया जा सकता। इसके लिए क्रमिक रूप से कई वर्षों तक प्रयास की आवश्यकता होती है। रसायनों का उपयोग धीरे-धीरे काम करके खेत को पुनः जीवित किया जा सकता है।

इस मिशन का आरंभ हिमांशु चतुर्वेदी, जो अंतरराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में कार्यरत हैं, के द्वारा शासन की योजनाओं की सहायता से किया गया। उन्होंने कार्य करते समय पाया कि पिछले कई वर्षों में दवा कंपनियों के मुनाफे और गंभीर बीमारियो (कैंसर, सुगर, ब्लड प्रेशर) में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जिसका सीधा संबंध बिगड़ते हुए इंसानी स्वास्थ्य से है। उन्होंने सोचा क्यों न लोगों को दवाई अधिक खरीदने की बजाय अच्छा भोजन प्रदान किया जाए, जो बीमारियों का मूल कारण है।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप के बेकार पड़े आयुध निर्माण इकाइयों में रसायनों का उत्पादन आरम्भ हुआ। इन रसायनिक पदार्थों ने खेतों में चमत्कारिक रूप से उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया। प्रारंभ में तो ये ईश्वरीय पदार्थ लगा, पर कालांतर में शोधकर्ताओं ने बताया कि खेतों में इनके उपयोग से खेत बंजर हो रहे हैं और कई पेट संबंधी बीमारियों से लेकर कैंसर तक कि समस्या हो रही है।

विगत 2 वर्षों में कोविड लॉकडाउन में समय का सदुपयोग करते हुए तीनो मित्रों ने खेती के इस तरीक़े से स्थानीय स्तर पर पहचान बनाई है। आरम्भ में इन्होंने बगहा स्थित केशव माधव गौशाला से जैविक कृषि की शुरुआत की थी। अब बड़े स्तर पर बमुरहा में कर रहे हैं। केंद्र में कई जैविक उत्पादों की बिक्री जैसे हल्दी, प्याज़, आलू, ढेंचा, वर्मी कम्पोस्ट, केचुए, जैविक सब्जियां आदि है और निःशुल्क प्रशिक्षण भी समय समय पर होता है।
सतना स्थित उद्यानिकी विभाग के माध्यम से इन लोगों ने कई योजनाओं का लाभ लिया है। जिनमे उन्नत बीजों, पौधों, वर्मी कम्पोस्ट यूनिट और सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर आदि प्रमुख है। मझगवां स्थित केवीके भी जैविक खेती और कृषकों को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।

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