Good future for children:digi desk/BHN/बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए आदिवासी महिलाओं ने शराब की पुरातन परंपरा को छोड़ने का संकल्प लिया है। सीधी जिले की कुसमी तहसील के गांव की ये महिलाएं ग्राम सुधार समिति के सहयोग से बच्चों के भविष्य के लिए शराब मुक्ति के लिए सक्रिय हैं। उन्हें जब डॉक्टरों ने बताया कि शराब पीने से गर्भस्थ शिशु पर असर पड़ता है और बच्चे कुपोषित भी हो जाते हैं। उन्हें कुपोषित होने का मतलब भी समझाया, तब महिलाओं पर असर पड़ा और पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को बदलने का संकल्प लिया।
बारह हजार आबादी वाले 10 गांव की महिलाओं ने ठान लिया है कि वे नए वर्ष में गांव को शराब मुक्त करके रहेंगी। इसमें पुरुष भी सहयोग कर रहे हैं। ऐसे करेंगे जागरूक आदिवासी महिला-पुरुष ग्राम सुधार समिति के सहयोग से समाज के लोगों को शराब से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं।
वे महिलाओं को बता रहे हैं कि शराब का असर गर्भस्थ शिशु पर भी होता है। आदिवासी महिलाएं अब ग्रामवासियों को जागरूक करेंगी। इसके लिए उन घरों को चिन्हित किया जाएगा, जहां शराब बनती है। उन घरों की महिलाएं अपने घर से इसकी शुरुआत करेंगी।
ग्राम सुधार समिति लगातार काउंसलिंग कर गांव में शराब बनने से रोकेगी। कोई शराब का नशा करेगा या बनाएगा तो उसे जुर्माना देना होगा। जुर्माने के तौर पर वह अभियान का हिस्सा बनेगा। क्यों पड़ी जरूरत आदिवासी क्षेत्र के परिवार घर में महुआ से देसी शराब बनाते, बेचते और सेवन भी करते रहे हैं। इसमें बुजुर्ग के साथ युवा पीढ़ी भी शामिल है। इससे कई का गंभीर बीमारी के कारण घर उजड़ गया है। गर्भस्थ शिशुओं की भी मौत हो गई। कई बच्चे कमजोर व कुपोषित भी हैं।
पुरुषों के शराब पीने की लत के कारण महिलाओं को परिवार चलाने के लिए मजदूरी करना पड़ती है। इन गांवों से शुरुआत आदिवासी बाहुल्य कुसमी के कमछ, धुपखड़, मेड़रा, करौटी, बिड़ौर, रामपुर,तमसार, खोखरा, ठाड़ीपाथर, गाजर, नौढ़िया और पोड़ी गांव से इसकी शुरुआत होगी। ये करेंगे प्रेरित चंद्रकली सिंह मेंडरा, सावित्री सिंह धुपखड़, कौशल्या देवी खोखरा, सुंदरलाल यादव करौटी, धर्मजीत सिंह ठाड़ीपाथर शुरुआत करेंगे।