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रिक्शा वाली मैडम चली गली-गली, ज्ञान का अलख जलाती, घर से बच्चों को बाहर निकालती

Inspirational riskha vali madem: digi desk/BHN/गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का अहम और पवित्र हिस्सा है। भारत में प्राचीन काल से गुरु-शिष्य परंपरा चली आ रही है। जीने का तरीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कुछ ऐसी ही प्रेरणा दे रही हैं राजधानी की शासकीय माध्यमिक शाला मठपुरैना की शिक्षिका कविता आचार्य। वह गली गली रिक्शे से घूम रही हैं और बच्चों को पढ़ा रही हैं। कविता आचार्य कहती हैं कि कोरोना के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होना चाहिए।

इसी बात को ध्यान में रखकर अभी कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल नहीं लग रहे हैं, ऐसे समय मे मेरे द्वारा शहर के मोहल्लों और गांवों तक पहुंच कर बच्चों को पढ़ा रही हूं। चूंकि कई बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं और इसकी वजह से वे आनलाइन कक्षाओं में नहीं जुड़ पा रहे हैं। इसलिए मैं रिक्शा में लाउडस्पीकर लगाकर चलती-फिरती कक्षा के रुप मे अध्यापन कार्य गतिविधियों के माध्यम से संपादित कर रही हूं। इससे लगभग 30 से 40 बच्चे प्रतिदिन लाभान्वित हो रहे हैं। इसमें पार्षद, पालकगण एवं शाला समिति के सहयोग से पूर्णतः सामाजिक दूरी, मास्क, सैनिटाइजर का प्रयोग करते हुए गतिविधि आधारित शिक्षा दी जाती है।

कविता आचार्य ने बताया कि- मेरे द्वारा शीट्स एवं क्राफ्ट पेपर के प्रयोग से बच्चों को नई नई गतिविधियों को कराया जाता है। विभिन्न कौशल जो आगे उन्हें स्वयं के आजीविका के लिए काम आए, उसकी विशेष रूप से जानकारी दी जाती है। कोविड 19 के रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए कक्षा सातवी को अंग्रेजी के पाठ -“Hand care ” पाठ को उदाहरण स्वरूप लेते हुए प्रत्येक बच्चे को इसके बारे में शीट के माध्यम से एवं स्वयं बच्चों से कराते हुए प्रतिदिन कराया जाता है।

इससे फायदा यह होता है कि बच्चों को रटने की जगह वे इसे अपनाते हैं और अंग्रेजी को सरल रूप से सीखते हैं। बच्चों द्वारा पाठ से संबंधित क्रियाकलापों को स्वयं भी प्रस्तुति दिया जाता है। रिकार्ड की गई कविताओं को स्पीकर के माध्यम से बार-बार सुनाया और याद कराया जाता है।

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