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Satna: स्केवयर स्ट्राबेलर के प्रयोग का प्रथम अनुभव दीपक के लिये रहा सुखद

:खुशियों की दास्तां

सतना जिले में स्ट्रामैनेजमेंट का नवाचार

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिगत खेतों में फसल कटाई के उपरांत नरवाई जलाने की कुप्रथा पर नियंत्रण के लिये प्रशासन, कृषि वैज्ञानिक तथा विभाग के माध्यम से निरंतर प्रयास किये जा रहे है। लेकिन फिर भी किसानों द्वारा फसल कटाई उपरांत फसल अवशेषों के शीघ्र निपटान के लिये खेतों में आग लगाकर खेत की मिट्टी के लिये लाभदायी तत्वों को नष्ट किया जा रहा है। खेतों में नरवाई में आग लगाने के परिणास्वरुप प्रकृति, पर्यावरण और जान-माल की क्षति के रूप में समाज को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। खेतों में नरवाई प्रबंधन के लिये शासन द्वारा किसानों को जागरुक कर इसके यांत्रिकीय समाधान की ओर रुख करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
शासन द्वारा नरवाई के यांत्रिकीय समाधान के सुझाव को अपनाते हुये जनपद उचेहरा के ग्राम कुसली इचौल निवासी दीपक पाण्डेय ने इस ओर कदम बढाया है। दीपक ने स्केवयर स्ट्राबेलर उपकरण का प्रयोग कर नरवाई जलाने की समस्या से छुटकारा पाया है। दीपक ने बताया कि स्क्वेयर स्ट्राबेलर उपकरण के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कि धान के पैरा की बंडलिंग कर सकता है। स्क्वेयर स्ट्राबेलर के संबंध में स्वयं से अध्ययन पश्चातकृषि अभियांत्रिकी कर्मशाला सतना से इस उपकरण के उपयोग की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई। बल्कि उपकरण का समक्ष में अवलोकन भी कराया गया। फिर भी दीपक के मन में संशय बना रहा कि इस उपकरण के क्रय का जिला में यह पहला प्रयोग होगा सफल होगा या नही। कृषि अभियांत्रिकी के अधिकारियों की हौसला अफजाई से दीपक ने स्क्वेयर स्ट्राबेलर क्रय किये जाने का निर्णय किया। दीपक को उपकरण पर शासन के द्वारा अनुदान की भी सुविधा दी गई। नवम्बर 2022 में स्क्वेयर स्ट्राबेलर उपकरण क्रय कर दीपक ने कार्य की शुरूआत अपने ही प्रक्षेत्र से शुरू की। कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय के दिशा-निर्देश अनुसार राशि उपकरण क्रय करने पर 6 लाख रुपये का अनुदान भी प्राप्त हो गया। उपकरण की लागत राशि 13 लाख रुपये थी।

दीपक ने बताया की उपकरण की कार्यशैली से अत्यंत उत्सुकता हुई। यह उपकरण एक दिवस में 5 से 6 एकड़ के क्षेत्रफल पर आयताकार बेलर बनाने में सक्षम है। एक आयताकार बेलर का वजन 15 से 18 किलो तक होता है तथा एक एकड़ के क्षेत्रफल पर 100 से 120 तक बंडल फसल अवशेष की स्थिति अनुसार तैयार होते है। यह मेरा प्रथम प्रयोग है। निरंतर अनुभव प्राप्त हो रहा है जिसमें मै इसको और अधिक उपयोगी बना पाउंगा यह मुझे पूर्ण विश्वास है। इस उपकरण के आ जाने से न सिर्फ मेरे गांव अपितु आसपास के कृषक भी फसल अवशेष में आग न लगाकर उपकरण की प्रतिक्षा करते हैं तथा निर्धारित क्रम पर मै सबको परामर्श देकर कि आग न लगाये मेरे द्वारा बंडल बनाने का कार्य अवश्य किया जावेगा। लोंगो में विश्वास जागृत हो गया और पैरा में आग नही लगाते हैं चाहे उन्हें दो चार दिन प्रतीक्षा करनी पडे। अभी तक मेरे द्वारा लगभग 7000 बंडल तैयार कर लिये गये है तथा लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर आग लगाये जाने की कुप्रथा पर नियंत्रण पाया गया। मेरे द्वारा कृषकों के लिये यह कार्य निःशुल्क होता है। प्राप्त बंडल का ईधन के रूप में औद्योगिक कारखानों से मांग आ रही है। अभी तो यह जानकारी है कि मेरे ग्राम इचौल में ही उद्योग स्थापित हो रहा है जिसमें कि इसकी मांग है। मुझे विश्वास है कि पैरा में आग लगाये जाने की सामाजिक कुप्रथा जिससे व्याप्त प्रदूषण तथा जमीन की उर्वरा शक्ति के क्षरण पर नियंत्रण के साथ-साथ मै इससे आय का भी सृजन करूंगा।

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