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Satna: अष्टमी पर मैहर में मां शारदा देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का लगा तांता, लाखों भक्तों ने माँ के दरबार में टेका मत्था

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ मैहर नवरात्र पर अष्टमी के दिन माता रानी के भव्य श्रृंगार के दर्शन और आरती के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगी हुई दिखाई दी। इस समय मैहर के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा देवी के दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। अष्टमी के दिन मां की विशेष पूजा कर लोग उनकी कृपा पाने के लिए आतुर हैं। लोगों की श्रद्धा और भक्ति के बीच मां शारदा देवी को विशेष भोग लगाया गया। अष्टमी नवरात्रि पर सोमवार को लाखों भक्तों ने माँ शारदा के दरबार में मत्था टेका। समूचे मेला परिसर में प्रशासन द्वारा पुख्ता व्यवस्था की गई है ताकि माता के दर्शनों के लिए पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की असुविधा न हो।

प्रशासन ने भी लोगों की बढ़ी भीड़ को देखते हुए व्यापक व्यवस्था की हुई है। मां के जयकारे लगाते हुए लोगों का सैलाब दिखाई दे रहा है। मंदिर के पट सुबह साढ़े चार बजे खोले गए। पुजारी ने माता के श्रृंगार किए। लोगों का मां शारदा पर अटूट विश्वास है। श्रध्दालुओं का विश्वास है कि मां उनकी मनोकामना पूरी करती हैं और उनके संकटों को भी हरती है। लोग मां की तस्वीरों और मंदिरों के साथ इंटरनेट मीडिया पर भी पोस्ट कर रहे हैं।

देश के कोने-कोने से लोग पहुंचे

मां शारदा के दर्शन के लिए प्रदेश के ही नहीं देश के कोने-कोने से लोग नवरात्र में पहुंचते हैं। इसके लिए रेलवे ने भी व्यवस्था की है और करीब 16 ट्रेनों को यहां पर विशेष रूप से दो मिनट का स्टापेज दिया जा रहा है। इससे दूर से आने वाले श्रद्धालुओं को राहत मिल सके।

मां शारदा देवी का मंदिर, आज भी आते हैं आल्हा और ऊदल

मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह सतना जिले में भी 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार।

मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है।

पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है। आल्हा और उदल करते है सबसे पहले माँ के दर्शन क्षेत्रीय लोगों के अनुसार अल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।

आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। क्या है मंदिर से जुड़ी कहानी- माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थी। उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी।

वे शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सती ने अपनी जि़द पर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।

उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था। हालांकि, सतना का मैहर मंदिर शक्ति पीठ नहीं है। फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों का रेला लगा रहता है।

इसके अलावा, ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। शारदा देवी का मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म के नजरिये से खास नहीं है। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है।

 

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