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Satna: गौशाला का संचालन कर आत्मनिर्भर बनी स्व सहायता समूह की आदिवासी महिलाएं

(जनजाति गौरव दिवस पर विशेष)

सतना,भास्कर हिंदी न्यूज़/ प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं सभी वर्ग के हितग्राहियों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। विकासखंड रामपुर बघेलान अंतर्गत ग्राम पंचायत गाडा की वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह की आदिवासी महिलायें गौ सेवा एवं गौ संवर्धन तथा आत्म निर्भरता के अनूठे प्रयोंगो से स्वाबलंबी बनने की दिशा में अग्रसर हैं। समूह की सदस्य शीला ने बताया कि 14 आदिवासी महिलाओं ने मिलकर वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह बनाया, जो मध्यप्रदेश आजीविका मिशन से पंजीकृत है। वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ग्राम पंचायत गाडा में निर्मित 100 गौवंश की क्षमता का सर्व-सुविधा युक्त गौशाला संचालन हेतु दिया गया। साथ ही 11 एकड़ क्षेत्रफल का तालाब एवं चारागाह के लिए जमीन भी दी गई। जिसमें वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह द्वारा शासन से मिलने वाली राशि की मदद से गौ सेवा का कार्य किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गौ माता के भोजन के लिए प्रतिदिन प्रति गोवंश 20 रूपये दिये जाते है। जिसमें बेसहारा गौवंश को आश्रय दिया जाता है तथा समूह द्वारा गौ संवर्धन हेतु गिर, साहिवाल नस्ल के नंदी बाहर से मंगवाए गए हैं। जिनसे किसानों के गौ तथा गौशाला में नस्ल सुधार का कार्य भी किया जाता है। वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह नें आत्मनिर्भर बनने का आधार गौ वंश का गोबर एवं गौमूत्र को बनाया है। गौशाला में जहां गौ सेवा का कार्य होता है,ं वहीं गोबर से आदिवासी समूह की महिलाओं द्वारा केंचुआ खाद तथा गौ मूत्र से अर्क एवं खेती की दवाईयां बनाने का कार्य होता है।

वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह की आदिवासी महिलाओं द्वारा गौ सेवा, नस्ल सुधार के साथ-साथ गौ वंश को बढ़ावा देने के लिए आजीविका गौ वंश गोबर खरीदी केंद्र स्थापित किया गया है। जहां डेढ़ रुपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीदा जाता है। गौशाला के गोबर एवं खरीदे गए गोबर में जैव कचरा, सूखे पत्ते, बचा हुआ भूसा तथा धान का पैरा मिलाकर केंचुआ खाद बनाने का कार्य किया जाता है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए गौ शाला में निर्मित केचुआ खाद 450 रूपये प्रति क्विंटल की दर से कृषकों को बेंचा जाता है।

गौ शाला के संचालन से समूह की आदिवासी महिलाएं पर्याप्त आय अर्जित कर रही हैं। दैनिक जीवन के खर्च अच्छी तरह से चलाने के बाद बचत के पैसों से समूह द्वारा गौशाला के चारागाह की भूमि पर में तार-बाड़ी का कार्य भी कराया गया है। साथ ही चारागाह की सिंचाई के लिए मोटर पंप तथा चारा काटने के लिए कटिया मशीन खरीदी गई है। स्व-सहायता समूह की आदिवासी महिलाओं ने गौशाला में मशरूम (बटन एवं ओयस्टर) की खेती की तैयारी पूरी कर ली है।
स्व-सहायता समूह की मार्गदर्शिका श्रीमती साधना तिवारी बताती हैं कि बाजार में बटन मशरूम 250 रूपये एवं ओयस्टर मशरूम 150 रूपये प्रति किलोग्राम बिकता है। इससे स्व-सहायता की समूह की महिलाओं को 50 से 60 हजार रूपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त होगा एवं अन्य किसानो को भी जागरुक कर मशरुम खरीदी केन्द्र स्थापित करने में मदद मिलेगी। वैष्णवी आजीविका स्व-सहायता समूह की आदिवासी महिलाओं ने गौ शाला संचालन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा प्रदेश सरकार को हृदय से कोटि-कोटि धन्यवाद दिया है।

कड़कनाथ से मिलेगा पोषण और खुशहाली, आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में दी जा रही कुक्कुट इकाई

राज्य सरकार विकास की मुख्यधारा में पिछड़े जनजाति वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं स्व-रोजगार के अवसर मुहैया कराने कृत-संकल्पित है। सतना जिले के उचेहरा विकासखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में कड़कनाथ कुकुट योजना के तहत नवाचार किया जा रहा है।
कड़कनाथ कुक्कुट पालन योजना के नवाचार के तहत उचेहरा विकासखंड के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों गोबरांव खुर्द, गोबरांव कला, पिथौराबाद, धनेह, जिगनहट, बांधी, मौहार और नरहटी में आदिवासी वर्ग की महिलाओं को 30 कड़कनाथ कुक्कुट इकाई वितरित की गई हैं। उप संचालक पशु चिकित्सा डॉ प्रमोद शर्मा बताते हैं कि आदिवासी वर्ग की महिलाएं सुरक्षित रूप से मुर्गी पालन कर सकती हैं। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए आदिवासी बाहुल्य ग्रामों की महिलाओं को प्रति हितग्राही 28 दिनों के 40-40 कड़कनाथ मुर्गी के चूजे प्रदाय किए गए हैं। एक इकाई में इन 40 चूजों को खिलाने के लिए 30 दिवस का उच्च गुणवत्ता युक्त कड़कनाथ कुक्कुट आहार (58 किलोग्राम) भी दिया गया है। आमतौर पर माना जाता है कि आदिवासी परिवारों में बहुधा पोषण की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देने से छोटे बच्चे कुपोषण का भी शिकार हो जाते हैं। कड़कनाथ कुक्कुट पालन से कुपोषण भी दूर करने में मदद मिलेगी और आदिवासी परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी।
योजना की लाभान्वित धनेह ग्राम की रुमी कोल बताती है कि इनका परिवार पहले भी मुर्गी और बकरियां पालता रहा है। लेकिन इस बार सरकार की तरफ से कड़कनाथ के चूजें और 30 दिन का कुक्कुट आहार भी मुफ्त मिला है। अपने दैनिक जीवन के कामकाज के साथ ही मुर्गी पालन व्यवसाय करना कोई मुश्किल का काम नहीं है।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि कड़कनाथ मुर्गे को काला मासी भी कहते हैं। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। सफेद चिकन के मुकाबले इसमें कॉलेस्ट्रॉल का स्तर काफी कम होता है। फैट की मात्रा कम होने से हृदय और डायबिटीज रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।

महंगा बिकता है अण्डा और मांस

इस प्रजाति के मुर्गी के अंडे अन्य मुर्गियों के अंडों की तुलना में काफी महंगे होते हैं। इसका एक अंडा लगभग 30 रूपये तक बिकता है और एक कड़कनाथ मुर्गे की कीमत बाजार में 900 से 1100 रूपये प्रति किलो के लगभग होती है। जबकि मुर्गी की कीमत इससे भी तीन गुना से अधिक होती है। कड़कनाथ का एक चूजा तीने महीने की अवधि में लगभग डेढ़ किलोग्राम वजन का हो जाता है।

 

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