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चिट्ठी न कोई संदेश…..कहां तुम चले गये….!

“शब्दांजलि, श्रद्धांजलि”

व्यापारियों का एक बड़ा मंच ‘विंध्य विकास फोरम ‘आज अपने संयोजक या यूं कहें कि ‘अभिभावक’ से हमेशा के लिए रिक्त हो गया।  मणि इंडस्ट्रीज के मालिक  डा. दिनेश अग्रवाल हम सभी के बीच नहीं रहे। यह दुखद सूचना जिसे भी मिली वह हतप्रभ रह गया। कई बार होता है जब सच सुन कर, जान कर स्वयं की अंतरात्मा उस पर ‘विश्वास’ नहीं करती, परंतु ‘यथार्थ’ यथार्थ होता है। यह तो प्रकृति का ‘अटूट’ नियम है कि जो आया है वो जायेगा। पर इस तरह चुपचाप आकस्मात चले जाना…मन को भीतर तक झकझोर कर रख देता है। मेरा और डा. दिनेश जी का साथ तकरीबन 35 वर्ष से ज्यादा का रहा है।

डा. दिनेश जी के अंदर एक ऐसा ‘लौहपुरुष’ हमेशा मौजूद रहता था जो उनके साथ-साथ उनके संगी-साथियों को भी संबल प्रदान करता था कि जीवन में चाहे कितने उतार-चढ़ाव आयें, कितनी ही मुसीबतें आयें.. उनसे डरना नहीं हैं और जब आप अपने भीतर के ‘संशय’ और ‘भय’ को मन से बाहर निकाल फेंकते हैं तो आपको मुसीबतों पर विजय प्राप्त करने और लक्ष्य हासिल करने से कोई ताकत नहीं रोक सकती।

ऐसा नहीं है कि डा.दिनेश सिर्फ दूसरों को यह समझाते थे अपितु उन्होंने स्वयं कभी भी अपने आपको किसी भी परिस्थिति में कमजोर नहीं होने दिया। उनका एक सूत्र वाक्य जो सिर्फ मुझे ही नहीं, अपितु उनके साथ उठने-बैठने वाले साथी, चाहे वो किसी भी क्षेत्र से क्यों न जुड़े हों…सभी को जीवनपर्यंत याद रहेगा कि जीवन में यदि कुछ हासिल करना है वह चाहे बड़ी कोशिश हो या छोटी, सबसे पहले अपने भीतर पैठी ‘नकारात्मकता’ को बाहर निकाल फेंके और हमेशा ऐसे लोगों से दूरी बना कर रखें जो आपको भविष्य की नकारात्मकता से कमजोर बनाने का प्रयास करते रहते हैं।

जीवन तो इस दुनिया में आने वाला हर इंसान जीता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग कर दूसरों को बहुत कुछ दे जाते हैं वो भी ‘दान’ में नहीं, खुद की मेहनत के बूते लक्ष्य हासिल करने का जज्बा। डा.दिनेश की मित्र मंडली में चाहे वह व्यापारिक हो या किसी और क्षेत्र से जुड़े हुए, बहुत से लोग आसानी से मिल जायेंगे जिन्होंने कर्मठता,सकारात्मकता एवं उदारता का पाठ डा.दिनेश जी से पढ़ कर अपने हौसलों को ‘उड़ान’ दी और आज सफलता के आसमान पर ‘तारों’ की तरह चमक रहे हैं। उनकी इस सूची में मैं भी शामिल हूं। आज दोपहर जब उनके अवसान की दुखद सूचना मुझे मिली तो विश्वास करना सहज नहीं था। तकरीबन 10 दिन पहले मेरी उनकी भेंट हुई थी। पर जब भी उनसे भेंट होती खातिरदारी में , चर्चाओं के दौर मे उनकी ‘चाय पार्टी’ जरूर होती वह भी बिस्किट के साथ। नियति ने उस दौर को तो शायद ‘बांध’ दिया परंतु डा.दिनेश के अवसान पर ‘अविश्वास के बादल’ दिलो-दिमाग से छंटने का नाम ही नहीं ले रहे..!

नियति ने उनके माध्यम से उनके कभी न थकने वाले कदम,कभी न रुकने वाले विचार और कभी भी हार न मानने वाली सीख तथा कार्ययोजना बना कर लक्ष्य प्राप्त करने की शिक्षा तो हम सब को दे दी लेकिन जो ‘प्रिय’ था उसे छीन लिया। ह्रदय में उनकी रिक्तता की ‘पीड़ा’ अनंत है पर सबके हाथ बंधे हैं..इसलिए कि ‘आवागमन’ के फेर से ना कोई कभी मुक्त हुआ है और न ही होगा। बीते 35 वर्षों में मैनें कभी उनके चेहरे पर तनाव के भाव नहीं देखे। चेहरे पर हमेशा चिरंतन मुस्कुराहट लिए हर पल सहयोग के लिये तैयार अद्भुत व्यक्त्वि के धनी थे डा. दिनेश जी। जीवन के ‘भंवर’ में कई बार उनकी नैया डूबी, उतराई पर हर बार उन्होंने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत ‘पंख’ खोले और सफलता के आसमान में नई इबारत लिखी।

उनके अनायास चले जाने से सब दुखी हैं, सभी के अंतर्मन रो रहे हैं परंतु नियति का क्रूर चक्र यूं ही चलता रहता है। जाना हम सब को उसी राह पर है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई आज तो कोई कल..!  पर एक बात कहूं.. दिनेश जी आप ने न कोई चिट्ठी दी और न कोई संदेश..बस यूं ही चले गये..शिकायत है हमें आपसे…! इस तरह कोई जाता है क्या…? आप दूसरी दुनिया में पहुंच कर कहीं ‘मुस्कुरा’ रहे होंगे कि देखो..इस तरह का जाना भी बहुत कम लोगों के भाग्य में होता है, और यह सच भी है। ईश्वर उनके परिजनों को यह गहन दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करे, उन्हें अपने चरणों में स्थान दें। भास्कर हिंदी न्यूज परिवार आपको पुरनम श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
“ऋषि पंडित”

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