Baba balaknath special connection with cm yogi adityanath know what is nath sampradaya rajasthan election results: digi desk/BHN/जयपुर/ राजस्थान में चुनावी नतीजे आने के बाद से बाबा बालकनाथ सुर्खियों में छाए हुए हैं। बाबा बालकनाथ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ में एक बड़ी समानता है। आइये जानते है उस सम्प्रदाय के बारे में जिससे बाबा बालकनाथ ताल्लुक रखते हैं।
योगी आदित्यनाथ के बाद एक और बाबा अभी चर्चा में छाए हुए है और उनका नाम है बाबा। बीजेपी ने इन्हें राजस्थान विधानसभा चुनाव में तिजारा सीट से उतारा और उन्हें जीत मिली। उनके जितने के बाद नाथ फिर से चर्चा में है। इस जीत के बाद से उनका नाम राज्य में मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के रूप में लिया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ की तरह बाबा बालकनाथ भी नाथ संप्रदाय से आते हैं। यूपी के सीएम योगी बाबा बालकनाथ के नॉमिनेशन में भी आए थे। दोनों के बीच चुनाव प्रचार के दौरान भी खास बॉन्डिंग देखने को मिला था। नाथ संप्रदाय की गिनती भारत का प्राचीन संप्रदायों में होती है और इस संप्रदाय को मानने वाले योगियों का जीवन हठ योग पर आधारित होता है। इस संप्रदाय को मानने वाले योगियों के दाहसंस्कार नहीं होते। इन्हें कड़े नियम कायदे का पालन करना पड़ता है। संप्रदाय द्वारा तय किए गए मानकों को हर हाल में पूरा करना होता है, दीक्षा लेने के लिए इन्हें अपने कान छिदवाने होते हैं और आंसू का एक बूंद भी आंख से नहीं बहाना होता है।
संप्रदाय के बारे में जानिए
मान्यताओं के अनुसार इस संप्रदाय की शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। लेकिन इसका मौजूदा स्वरूप बाबा गोरखनाथ ने दिया, जिन्हें महादेव का अवतार माना जाता है। देश के कई जगहों पर इस संप्रदाय के मठ हैं। यह मठ आर्थिक रूप से काफी संपन्न है और इसके जरिए शिक्षा से लेकर धर्म तक कई काम किए जाते हैं।
इस मठ से जुड़े लोग ज्यादातर सामाजिक कल्याण से जुड़े कामों में अपना समय व्यतीत करते हैं। गोरखनाथ धाम मठ की पीठ को भी इसी नाथ संप्रदाय की अध्यक्ष पीठ मानते हैं। जिस वजह से इसका प्रमुख देशभर में नाथ संप्रदाय का अध्यक्ष होता है, और अभी इस संप्रदाय के अध्यक्ष योगी आदित्यनाथ हैं।
नाथ संप्रदाय के योगियों का नहीं होता दाह संस्कार
इस संप्रदाय के योगियों का जीवन आम लोगों से काफी अगल होता है। इनकी जीवनचर्या काफी कठिन होती है। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या शरीर त्यागने पर उन्हें समाधि दी जाती है। जैसे हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शव को जलाया जाता है वैसे वे जलाये नहीं जाते। माना जाता है कि इस पंथ को मानने वालों का शरीर योग से शुद्ध हो जाता है, इसलिए उसे जलाने की आवश्यकता नहीं होती है। इस पंथ में मांस, मदिरा और तामसी भोजन निषेध है।
उम्र भर करना पड़ता है कठोर नियमों का पालन
इस संप्रदाय को मानने वाले किसी भी प्रकार के भेद-भाव में आदि काल से ही विश्वास नहीं करते। ऐसे नियम बनाये गए हैं कि इस पंथ को किसी भी जाति, वर्ण व किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है। 12 साल की कठोर साधना और तपस्या के बाद ही इसमें संन्यासी को दीक्षा दी जाती थी। दीक्षा लेने से पहले और बाद में उम्र भर इन्हें कठोर नियमों का पालन करना होता है।