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असहाय शिक्षिका अमरजीत के लिए मिसाल बन गये उनके पढाये गये शिष्य

शिक्षक दिवस पर विशेष
कहानी अमरजीत कौर की

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ 68 वर्षीय अमरजीत कौर के लिए उनके शिष्य मिसाल बन गये। सतना के राजेन्द्रनगर की एक गली में अपने एक अत्यंत सीधेसाधे भाई मंजीत के साथ किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही हैं ! उनका पूरा जीवन सन 72 से 2014 तक शिशु मंदिर हायर सेकेंडरी स्कूल रेलवे कॉलोनी में अध्यापन करते बीता। इस बीच में अमरजीत कौर ने अपनी 5 बहनों और एक भाई वाले परिवार का भरण-पोषण किया। उन्होंने अपनी सभी बहनों की शादियां कीं मगर खुद अविवाहित रहने का फैसला किया।

पाकिस्तान छोड़ा फिर रोजगार की तलाश मेें सतना आ गये

अमरजीत कौर के पिता स्व. संतोष सिंह आनंद देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से दिल्ली और फिर रोजगार की तलाश में सतना आए और यहां सुखेजा ब्रदर्स के पेट्रोल पंप में तेल टैंकर चलाने का कार्य करने लगे। सन 83 में संतोष सिंह की मृत्यु के बाद परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पूरी तरह से अमरजीत कौर के ऊपर आ गई। उन पर सिर्फ भरण-पोषण की ही नहीं अपितु अपनी पांच अविवाहित बहनों की शादी करने की जिम्मेदारी भी थी।

ट्यूशन पढ़ा कर चार बहनों की शादी की

अमरजीत कौर ने अपनी नौकरी करते और ट्यूशन पढ़ाते हुए अपनी 4 बहनों की शादियां कीं मगर एक की शादी वह नहीं कर सकीं क्योंकि उसे गश्त आते थे। वह अमरजीत कौर के साथ अविवाहित ही रही हालांकि अब उनकी मृत्यु हो चुकी है। इकलौता भाई अवश्य है जो अभी भी अमरजीत के साथ रहता है।

42 वर्ष स्कूल में सेवाएं दीं

अमरजीत कौर ने 1972 से 2014 तक यानी कुल 42 वर्ष रेलवे स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। उनके नेतृत्व में रेलवे कॉलोनी स्थित यह स्कूल अपनी पढ़ाई के लिए जाना जाता था, जहां से अनेक प्रतिभाशाली छात्र पढ़कर निकले और अपना कैरियर और व्यक्तित्व निर्मित किया। बीते कई सालों से वे सार्वजनिक तौर पर बहुत कम दिखाई देती थीं। इस दरमियान कुछ लोगों ने उन्हें शहर में, बाजार में पैदल जाते देखा पर अब बहुत दिनों से उनका दिखना बंद था।

बीते कुछ महीनों पूर्व वे राजेन्द्रनगर में जैन नेत्र चिकित्सालय जाते दिखीं जिन्हें एक सरदार जी हांथ पकड़ कर ले जा रहे थे। उनके संबंध में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि यह तो शिशु मंदिर वाली वही अमरजीत कौर हैं। शहर के वरिष्ठ पत्रकार निरंजन शर्मा ने उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि गली नंबर 13 में सेन वकील के सामने रहती हूं। चूंकि वरिष्ठ पत्रकार निरंजन शर्मा ने उस दौर में रेलवे स्कूल के कई कार्यक्रम को कव्हर किया था लिहाजा उन्होंने अपना परिचय देते हुए अमरजीत कौर को बताया परंतु अमरजीत कौर ने कहा कि उन्हें याद नहीं कि वे उनसे कब भेंट हुई। वरिष्ठ पत्रकार निरंजन शर्मा जब गली नंबर 13 में रहने वाले मित्र राजेश मोहबिया के घर पहुंचे और जानकारी ली कि क्या यहां रेलवे शिशु मंदिर वाली मैडम रहती हैं? रहती हैं तो कहां? राजेश के बताने पर वे मैडम के घर पहुंचे। घर क्या था.. सीलन और पुराने सामान से भरे दो छोटे कमरों में मैडम की दुनिया केन्द्रित थी। भाई मंजीत भी वहीं बैठा था जो उस दिन मैडम को अस्पताल ले जाते दिखा था। मैडम से बात हुई तो एक ऐसा वाकया सामने आया जिस पर आज की स्वाथी एवं खुदपरस्त दुनिया में विश्वास करना मुश्किल है।

वर्ष 2014 में बंद हो गया रेलवे स्कूल

सन 2014 में अचानक समिति द्वारा स्कूल बंद कर दिए जाने के बाद अमरजीत कौर को जीवन और परिवार चलाने के लाले पड़ गए थे ! सब बहनों की शादी कर तो वह उनके घर भेज चुकी थी। एक अविवाहित बीमार बहन का देहांत हो चुका था मगर वृद्धा मां और अधेड़ भाई उनके साथ था। सन 14 में ही मां का देहांत हो गया तो अमरजीत को गहरा सदमा लगा। पेंशन 1000/- रुपए थी मगर उससे
गुजारा करना बड़ा मुश्किल था।

बड़े कष्ट में बीते चार वर्ष

अमरजीत कौर ने बताया कि तीन-चार वर्ष बड़े कष्ट में बीत। बचत का पैसा भी खर्च और खत्म हो चला था, मगर विगत नवंबर से उनकी परेशान जिन्दगी ने एक राहत भरी सांस ली। उनके जीवन को गहरी होती जा रही परेशानियों से उबारने वाले हैं उनके 24 शिष्य जिन्होंने मैडम अमरजीत कौर से केजी वन से लेकर ग्यारहवीं तक कभी ना कभी या लगातार शिक्षा प्राप्त की। मैडम के स्कूल के ये छात्र देश और विदेश में बड़ी-बड़ी पोस्ट में हैं। कुछ सतना में ही हैं। इनमें से एक ने मैडम की आर्थिक और अवस्था के बुरे हालातों को देखा और अपने एक अन्य क्लासमेट से चर्चा की। इन सबने आपस में चर्चा की। बाद में सभी ने यह तय किया कि जिस अध्यापिका के कड़े अनुशासन और स्नेह भरी पढ़ाई से हम लोगों ने अपना-अपना कैरियर बनाया है, उनके बुढ़ापे में हम उनके मददगार बनेंगे।

टीचर मैडम के बदहाल हालात में रोशनी बने शिष्य दीपक

नवंबर 19 में बंगलौर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर का कार्य करने वाले एक छात्र दीपक सोनी मैडम से मिले और उनकी जरूरतों के बारे में जाना समझा। 3000 रुपए किराए के मकान में रहने वाली मैडम और उनके भाई का कुल 6000 रुपए से काम चल सकता था। दीपक ने सभी क्लासमेट्स का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और इस समस्या-समाधान पर विचार किया। सबने थोड़ा-थोड़ा अंशदान करना तय किया और अब वे सब नवंबर से हर माह चंदा कर मैडम को 6000/- उनके अकाउंट में जमा करा देते हैं ताकि उनका भरण-पोषण हो सके।
कहते हैं कि आप अकेले इस दुनिया को नहीं बदल सकते पर आपकी मदद से किसी अकेले लाचार व्यक्ति की दुनिया अवश्य बदल सकती है। आज अमरजीत व उनके भाई की दुनिया बदल गई है और इस दुनिया को बदला है उन बच्चों ने जिन्हें अमरजीत ने कभी स्कूल में पढ़ाया-डांटा और दुलारा था। वे आज अमरजीत की ताकत बनकर खड़े हो गए हैं। जब मैडम से शिष्यों की इस व्यवस्था के बारे में पूछा गया तो तो उन्होंने कहा –
प्रभु भावे बिन सांस ते राखे।
प्रभु भावे पाथर तैरावे।।

सब प्रभु की कृपा है। मेरे पढ़ाए बच्चों के माध्यम से वह मेरा जीवन चलाने का निमित्त बन गया है। मेरी शादी नहीं हुई। बच्चे नहीं हुए पर आज मेरे कई बच्चे हैं।

व्हाट्स ग्रुप बनाकर जुड़े पुराने सदस्य

दीपक ने आरएसएम (रेल्वे शिशु मंदिर) सोशल कॉज नामक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। जल्दी-जल्दी इसमें 24 पुराने छात्र जुड़ गए जो आज अपने पैरों पर खड़े हैं और उसके लिए वे स्कूल की अपनी मैडम के प्रति सदैव आभारी हैं।

शिष्य जो बन गये मिसाल
दीपक सोनी बंगलौर, राजू ठाकुर पुणे, दिनेश कुशवाहा पुणे, प्रशांत सिंह सतना, मनोज जैन सतना, देवेन्द्र स्वर्णकार यूएसए, संतोष कौल एसडीओ सिंगरौली, सचिन गर्ग महाराज जी चित्रकूट, शैलेश तिवारी दमोह, सुखविन्दर बेदी सतना, अजय प्रताप सिंह सतना, अजय सिंह रघुवंशी सतना व योगेन्द्र छतरपुर- इन सभी ने तय किया कि अब गुरु दक्षिणा देने का समय आ गया है। बस फिर क्या था- तुरंत ही फंड इकट्ठा हो गया और अब हर माह मैडम व उनके भाई का खर्च सहजता से उठाया जा रहा है। दीपक सोनी और प्रशांत सिंह परिहार मैडम का बीपीएल कार्ड भी बनवाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन्हें वृद्धावस्था पेंशन और अन्य शासकीय सुविधाएं भी मिलने लगें।

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