Once we cease to be judges whatever we say is- ust opinion cji on ranjan gogoi-s statement in rs : digi desk/BHN/नई दिल्ली/ मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि पद छोड़ने के बाद न्यायाधीश जो कुछ भी कहते हैं, वह सिर्फ राय है और बाध्यकारी नहीं है। इससे पहले सोमवार को राज्यसभा में मनोनीत सदस्य न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजन गोगोई ने राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा में भाग लते हुए कहा था कि केशवानंद भारती मामले पर पूर्व सॉलिसिटर जनरल टीआर अंद्यारुजिना की एक किताब है। किताब पढ़ने के बाद मेरा मानना है कि संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का एक बहुत ही विवादास्पद न्यायिक आधार है। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा।
केशवानंद भारती के 1973 के ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था और कहा था कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून के शासन जैसी कुछ मौलिक विशेषताओं को संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति गोगोई के उच्च सदन में दिए गए बयान का हवाला दिया।
सिब्बल ने दलील दी कि जिस तरह से केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त किया, उसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है जब तक कि एक नया न्यायशास्त्र नहीं लाया जाता है ताकि वे (केंद्र) जो चाहें कर सकें जब तक कि उनके पास बहुमत है। उन्होंने कहा, अब आपके एक सम्मानित सहयोगी ने कहा है कि वास्तव में बुनियादी संरचना सिद्धांत भी संदिग्ध है।
सिब्बल की दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ”सिब्बल जी, जब आप किसी सहयोगी का जिक्र करते हैं तो आपको किसी मौजूदा सहयोगी का जिक्र करना होता है। एक बार जब हम न्यायाधीश बनना बंद कर देते हैं, तो हम जो कुछ भी कहते हैं, वे सिर्फ राय हैं और बाध्यकारी नहीं हैं।’
गौरतलब है कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस साल जनवरी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बुनियादी संरचना सिद्धांत को ‘नॉर्थ स्टार’ कहा था, जो आगे का रास्ता जटिल होने पर संविधान के व्याख्याकारों और कार्यान्वयनकर्ताओं का मार्गदर्शन करता है और उन्हें एक निश्चित दिशा देता है। बुनियादी ढांचा सिद्धांत कई संवैधानिक संशोधनों को रद्द करने का आधार बना, जिसमें उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर संशोधन और संबंधित एनजेएसी अधिनियम को रद्द करना शामिल था।
अनुच्छेद 370 मामले में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल के बयान पर हस्तक्षेप किया और कहा कि संसद में कार्यवाही पर अदालत के समक्ष चर्चा नहीं की जा सकती है जैसे अदालत की कार्यवाही पर संसद में चर्चा नहीं की जाती है। उन्होंने कहा, ‘सिब्बल यहां संबोधित कर रहे हैं क्योंकि वह कल संसद में नहीं थे। उन्हें संसद में जवाब देना चाहिए था।’