अनूपपुर, भास्कर हिंदी न्यूज़/ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव जिले के नर्मदा उद्गम पवित्र नगरी अमरकंटक के सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र में शनिवार को आचार्य विद्यासागर महाराज की दिव्य देशना से प्रारंभ हो गया है। देव और गुरु आज्ञा के साथ जाप स्थापना हुई फिर घट यात्रा और ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण हुआ। अमरकंटक के सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र में शनिवार से यह महा महोत्सव हो रहा है जहां देश के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु अमरकंटक में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं।
108 कलश के साथ शामिल हुई महिलाएं
दोपहर सर्वोदय जैन मंदिर परिसर से भव्य कलश यात्रा निकली जिसमें 108 कलश के साथ पीतांबर वस्त्रों में महिलाएं शामिल हुई। इस दौरान बच्चे, युवा, पुरुष बैंड बाजे की धुन के साथ शोमायात्रा में थे। इसी तरह नौ दिवसीय इस आयोजन में सहभागिता निभाने वाले चयनित पात्र शोभा यात्रा में शामिल हुए जिन्हें रथ में सवार होने का अवसर मिला था। घट यात्रा नगर भ्रमण कर कार्यक्रम स्थल पहुंची जहां आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के आशीर्वाद से प्रतिष्ठाचार्य विनय भैया के निर्देशन में ध्वजारोहण संपन्न हुआ। इसके पश्चात मंडप शुद्धि और श्री जी की स्थापना हुई तथा मुनि श्री चंद्रप्रभ सागर एवं निरामय सागर द्वारा प्रवचन दिया गया।
क्या होता है पंचकल्याणक
हर धर्म की अपनी प्राचीन परंपरा और सांस्कृतिक संस्कार होता है, जिससे उसका धर्म फलता-फूलता है और सांस्कृतिक परिवेश का नया निर्माण भी हुआ करता है। पंचकल्याणक महोत्सव प्राचीन सांस्कृतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में होता है और नवीन संस्कृति के लिए वह प्रेरणा का कारण बनता है। अपने धर्म की वृद्धि के लिये धर्मात्माओं के लिए अपने शलाका पुरुषों के चरित को सामने रखकर के अपने कल्याण के लिये एवं धर्म के रहस्य को जानने के लिये उनके जीवंत प्रसंग को प्रकट करके कैसे आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा पूर्ण की जाती है उसी का प्रतीक है पंचकल्याणक महोत्सव की क्रिया और धर्म संस्कार का संचार जनमानस तक पहुंचाने का माध्यम है। संसार के सारे राग-रंग और इन्द्रियों के विषयों के प्रसंगों से ऊपर उठकर जो अपने आत्मकल्याणक के लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही पंचकल्याणक है। संसार के सारे पाप-पंक से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही पंचकल्याणक है। संसार के परिभ्रमण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही पंचकल्याणक है। जन्म-मरण और संसार के विषय कषायों की प्रवृत्ति से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही पंचकल्याणक है।