“खुशियों की दास्तां“
सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ जहां चाह है वहां राह है कहावत को रामनगर के ग्राम बटैया के सामाजिक कार्यकर्ता गोकरण प्रसाद शर्मा नें इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। गोकरण बताते हैं कि गरीब परिवार के सदस्य होनें के नाते बचपन से ही आर्थिक बदहाली में जीने ंकी आदत बना ली थी। लेकिन गरीब परिवार का सदस्य होनें के नाते परिवार की सरकारी नौकरी करनें की प्रेरणा के चलते मैनें भी बचपन से ही सरकारी नौकरी का स्वपन देखा। उस स्वप्न को साकार करनें के लिये और परिवार को आर्थिक सहयोग करनें के लिये मैनें कक्षा 10वीं से ही सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाये, परिणामतः मुझे एक कार्यालय में 1500 रूपये में डाटा फीडिंग का कार्य मिला। लगभग 2 वषों तक मैनें काम किया और घर के खर्च से जो बचता उसे बचा लेता था। इस अपेक्षा से की अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकूं।
गोकरण ने बताया कि 12वी पास होनें के बाद मैने उच्च शिक्षा के लिये प्राइवेट कालेज में रोजगार उन्मुखी पाठ्यक्रम की तलाश की, लेकिन कोर्स की फीस ज्यादा होने के कारण हिम्मत नहीं कर सका। मेरी पढ़ाई लगभग छूट सी गयी थी, लेकिन उसी समय वर्ष 2018 में जन अभियान परिषद के माध्यम से मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व क्षमता विकास कार्यक्रम की जानकारी हुई और मुझे अपने गांव के पास ही बी.एस.डब्ल्यू पाठ्यक्रम में प्रवेश बहुत ही कम फीस में मिल गया। गोकरण बताते हैं कि मुझे नहीं पता था कि जन अभियान परिषद मेरे जीवन के उत्कर्ष कारण बनेगा।
अपनी पुरानी यादों को बताते हुये गोकरण नें बताया कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते और बहन की शादी के लिये पैसों की व्यवस्था के लिये मुझे 12-12 घंटे तक काम करना पड़ता था। जिसके कारण मैं रविवार की कक्षाओं में लगातार अनुपस्थित रहनें लगा। मैं असमंजस में था कि अगर काम नहीं करूंगा तो परिवार कैसे पालूंगा और काम करता हूं तो पढ़ाई छूट जायेगी। इसी असमंजस से परेशान था तभी जन अभियान परिषद के एक प्रशिक्षण में मुझे स्व-रोजगार की दिशा मिली। मैंनें प्रेरणा प्राप्त कर अधिकारियों से सम्पर्क किया। उन्होने उचित सलाह देकर मेरा मनोबल बढ़ाया।
गोकरण कहते हैं कि मैनें जब स्व-रोजगार की ओर पहला कदम बढ़ाया था तो मेरे पास केवल 20 हजार रूपये थे और उस समय अगरबत्ती बनानें की मशीन 90 हजार रूपये में मिल रही थी। लेकिन मैनें साहस दिखाया और सतना की आयरा कम्पनी से लोन लेकर किस्त में अगरबत्ती बनानें की मशीन लेकर घर आ गया। अपनें जीवन को संवारनें की ललक और जीतनें की चाहत नें मुझे दिन में 18 घंटे कार्य की प्रेरणा मिली। मैनें प्रतिदिन अगरबत्ती के कार्य में मन लगाया और रविवार को कक्षा में जाकर अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। पहले वर्ष मेरी आय में वृद्धि हुई लगभग 5500 रूपये का मेरा कारोबार होनें लगा। रविवार की कक्षाओं में जब मैं जाता था तो मेरे साथी भी मेरी बनायी अगरबत्ती खरीद लेते और मेरे प्रोडक्ट के बारे में प्रचार अपनें गांवों में करके मेरी मदद कर देते थे। लगभग 2 वर्ष में मैनें अपनें परिवार का खर्च चलाते हुये मशीन के पूरे पैसे चुका दिये।
गोकरण ने बताया कि जिस दिन उसने मशीन का पूरा पैसा चुकाया वह दिन सर्वाधिक खुशी का दिन था। उस दिन नें गोकरण को जीवन की नई दिशा का बोध कराते हुये स्व-रोजगार के इस नये आयाम के लिये आत्मविश्वास से भर दिया। गोकरण नें फिर उस आत्मविश्वास के चलते पत्तल-दोना बनानें की मशीन खरीदी और फिर पूरा परिवार सहयोग करने लगा। जिसके परिणामस्वरूप गोकरण ने 1 वर्ष में कर्ज भी चुकता कर दिया। दूसरी मशीन का कर्ज पूर्ण करते करते गोकरण ने अपनी स्नातक की डिग्री पूर्ण कर ली और एम.एस.डब्ल्यू में प्रवेश ले लिया। गोकरण का स्व-रोजगार अब ज्योती ब्रांड के नाम से जाना जाता है। अभी हाल ही में गोकरण ने चप्पल बनाने की मशीन ले ली है और अपने स्व-रोजगार में नये साथियों को रोजगार देकर अपने साथ जोड़ा है।
गोकरण बताते हैं कि पहले मुझे माह में केवल 1500 रूपये से संतोष करना पड़ता था लेकिन स्व-रोजगार से अब मैं प्रतिमाह 35 हजार रूपये से ज्यादा कमाने लगा हूं। मैनें अपनें साथी सुकसेन को भी रोजगार दिया है। मेरी पढ़ाई जैसे जैसे प्रगति पर है वैसे-वैसे मेरा स्व-रोजगार प्रगति पर है। मैनें अभी अपने लिये गाड़ी ले ली है और कच्चे मकान को भी पक्का कर लिया है। गोकरण जैसे स्वाबलंबी युवा आज युवाओं के समक्ष प्रेरणास्रोत हैं। जो अपने हौसले, मजबूत इरादे और परीश्रम की ताकत से आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक उन्नति के वाहक बनकर ग्रामीण युवाओं का हौसला बढ़ा रहे हैं।