सूतक काल प्रारंभ- इस बार लगने वाले चंद्रग्रहण में सूतककाल मान्य नहीं होगा।

चंद्र ग्रहण की धार्मिक मान्यता

मान्यता है कि चंद्र ग्रहण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. इसी कारण से जब भी चंद्रमा पर ग्रहण लगता है तो इसका सीधा असर मन पर होता है. चंद्र ग्रहण का असर उन लोगों पर अधिक पड़ता है, जिनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण पीड़ित हो या उनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष बन रहा है. इतना ही चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है, जिससे समुद्र में बड़ी -बड़ी लहरें काफी ऊचांई तक उठने लगती है. चंद्रमा को ग्रहण के समय अत्याधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसी कारण से चंद्र ग्रहण के समय हवन, यज्ञ, और मंत्र जाप आदि किए जाते हैं।

पूर्ण चंद्रग्रहण 2025 में दिखेगा

संपूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 में देखने को मिलेगा। वैसे सामान्यतः एक वर्ष में 4 ग्रहण लगते हैं। इसमें दो सूर्य ग्रहण और दो चंद्रग्रहण, लेकिन कभी-कभी इससे ज्यादा भी ग्रहण पड़ जाते हैं। 2024 में 3 चंद्रग्रहण और दो सूर्य ग्रहण लगेंगे। ऐसे ही 2027 में भी ग्रहण पड़ेंगे। 2029 हमारे लिए खास होगा, तब यहां 4 सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण देखने को मौका मिलेगा।

वर्ष 2020 के ग्रहण

  • – पहला ग्रहण : 10 जनवरी, चंद्र ग्रहण (लग चुका है)।
  • – दूसरा ग्रहण : 5 जून, च्रद्र ग्रहण (लग चुका है)।
  • तीसरा ग्रहण : 21 जून, सूर्य ग्रहण (लग चुका है)।
  • – चौथा ग्रहण : 5 जुलाई को लगेगा, चंद्र ग्रहण।
  • – पांचवा ग्रहण : 30 नवंबर को लगेगा, चंद्र ग्रहण।
  • – छठा ग्रहण : 14 दिसंबर को लगेगा, सूर्य ग्रहण।

ग्रहण काल में इन स्‍थानों पर जाने से बचें

चंद्र ग्रहण प्रारंभ से 12 घंटे पहले ग्रहण का सूतक शुरू हो जाता है। इस दौरान पृथ्वी पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव पड़ता है, इसलिए इस दौरान होने वाले दुष्प्रभाव से बचने की सलाह शास्त्रों में दी गई है। चंद्र ग्रहण के सूतक काल के दौरान शमशान घाट या ऐसी भूतहा जगह जैसे खंडहर या सूनसान मकान आदि से या उनके नजदीक से ना गुजरें, क्योंकि ऐसे समय बुर् प्रभाव वााली शक्तियां काफी ज्यादा सक्रिय होती है, जो आपको ऊपर खराब प्रभाव डाल सकती है और आपके प्रेतात्मा के शिकार होने की संभावना हो सकती है।

चंद्र ग्रहण के पहले और बाद में गर्भवती महिलाएं रखें ये सावधानियां

चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं और इसके आसपास जन्मे शिशु को जन्‍म देने वाली महिलाओं को विशेष सावधानी बरतना चाहिए। मान्यता है कि चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को कुछ विशेष बातों का खास ख्याल रखना चाहिए नहीं तो इस दौरान लापरवाही बरतने पर शिशु के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। मान्यता है कि चंद्र ग्रहण गर्भवती महिलाओं के लिए अशुभ प्रभाव वाला देने वाला होता है। इसलिए ग्रहण की अवधि में इनको घर में रहने की सलाह दी जाती है।चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सब्जी काटना, कपड़े सीना आदि कार्यों में धारदार उपकरणों का उपयोग करने से बचना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु को शारीरिक दोष हो सकता है। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सोना, खाना पकाना, और सजना-संवरना नहीं चाहिए। ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए गर्भवती महिला को तुलसी का पत्ता जीभ पर रखकर हनुमान चालीसा और दुर्गा स्तुति का पाठ करना चाहिए। इस दौरान देव मंत्रों के उच्चारण से भी ग्रहण के दुष्प्रभाव से रक्षा होती है। ग्रहण की समाप्ति के बाद गर्भवती महिला को पवित्र जल से स्नान करना चाहिए नहीं तो उसके शिशु को त्वचा संबधी रोग होने की संभावना होती हैं। चंद्र ग्रहण के दौरान मानसिक रूप से मंत्र जाप का बड़ा महत्व है। गर्भवती महिलाएं इस दौरान मंत्र जाप कर अपनी रक्षा कर सकती है। इससे स्वयं के और गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक और उत्तम असर पड़ता है।

क्या है उपच्छाया चंद्र ग्रहण

ग्रहण से पहले चंद्रमा, पृथ्वी की परछाईं में प्रवेश करता है, जिसे उपच्छाया कहते हैं। इसके बाद ही चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, तब वास्तविक ग्रहण होता है। जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर केवल उसकी उपछाया मात्र ही पड़ती है, तब उपच्छाया चंद्र ग्रहण होता है। इसमें चंद्रमा के आकार में कोई अंतर नहीं आता है। इसमें चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती। लेकिन कई बार चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में जाए बिना, उसकी उपच्छाया से ही बाहर निकल आता है।