रीवा, भास्कर हिंदी न्यूज़/ रीवा में कांग्रेस नगर निगम महापौर जीतने के बाद इस कदर जश्न में डूबी रही की उन्हें परिषद ही भूल गया. सप्ताह भर का वक्त मिलने के बाद भी कांग्रेस के रणनीतिकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और भाजपा का मास्टर स्ट्रोक लगा दिया। महापौरी हारने के बाद अब सदन में बीजेपी का कब्जा होगा, भाजपा ने 6 निर्दलीय पार्षदों को अपने खेमे में लेकर सदस्यता दिला दी है और 18 से 24 के बहुमत आंकड़ों तक पहुंच गई है।
24 साल बाद रीवा शहर की महापौर हारने के बाद भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। स्ट्रोक ऐसा था की कांग्रेस फिर धराशाई हो गई। पार्टियों से बगावत कर निगम पहुंचे निर्दलीय पार्षदों को अपने खेमे में शामिल कर लिया। कांग्रेसी महापौर जीतने के बाद इस कदर जश्न में डूब गए की उन्हें नगर निगम परिषद भूल गई। उधर भाजपा को पांच बार चुनाव जीत कर हारने का गम था लेकिन भाजपा ने हार नहीं मानी। भाजपा ने कांग्रेस से पहले चाल चली और 20 साल बाद फिर एक बार इतिहास दोहराया। रीवा नगर निगम के 45 वार्डों में से अभी भाजपा के 18 पार्षद, कांग्रेस के 16 पार्षद और 11 निर्दलीय पार्षद चुनकर सदन पहुंचे थे। कयास लगाए जा रहे थे कि निर्दलीयों के भरोसे महापौर अजय मिश्रा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सदन पर कब्जा जमा लेंगे। लेकिन कांग्रेस की बाजी को भाजपा ने पलट दिया है। अटल कुंज में पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला और जिला अध्यक्ष ने 6 निर्दलीय पार्षदों को भाजपा की सदस्यता दिला दी। ऐसे में भाजपा 18 से 24 के जादुई आंकड़े तक पहुंच गई है।
भाजपा ने जिन 6 निर्दलीय पार्षदों को सदस्यता दिलाई है। उसमे वार्ड क्रमांक 1 से पार्षद शिवराज रावत, वार्ड क्रमांक 5 से पार्षद संजय सिंह, वार्ड क्रमांक 22 से पार्षद पूजा प्रमोद सिंह, वार्ड क्रमांक 40 से पार्षद नीलू कटारिया, वार्ड क्रमांक 43 से पार्षद शांति उर्फ आशा सहित एक अन्य का नाम शामिल हैं। चर्चा है कि ज्यादातर लोग भाजपा से बागी होकर नगर निगम वार्ड पार्षदी का चुनाव लड़े थे। 2 जून को पार्टी ने 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया था। अब उन्हीं को मनाकर घर वापसी कराई है। वही भाजपा पार्षदों को भी अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और कांग्रेस जश्न मनाती रह गई।
रीवा नगर निगम के नतीजों में भाजपा के 18, कांग्रेस के 16 और 11 निर्दलीय पार्षद जीते थे। वहीं भाजपा के महापौर प्रत्याशी प्रबोध व्यास को कांग्रेस उम्मीदवार अजय मिश्रा बाबा ने 10 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष चयन की रणनीति में फेल हो गई और भाजपा ने बाजी मार दी। इससे कांग्रेस जीत का जश्न तो मनाएगी लेकिन हार कर भी भाजपा मायूस नहीं होगी। यही तो बाजीगरी है जिसे समझने में कांग्रेस को लंबा वक्त लग गया।