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Satna: सतना जिला पंचायत के 26 वार्डों में BJP के 14, कांग्रेस के 7, बसपा के 3 और दो निर्दलीय ने मारी बाजी

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ सतना जिला पंचायत के 26 वार्डों में भाजपा समर्थित सदस्यों की जीत के बाद भाजपा का दबदबा दिख रहा है। इसमें 14 वार्डों से भाजपा समर्थित सदस्यों ने जीत हासिल की है जबकि 7 वार्डों में कांग्रेस, तीन वार्डों में बसपा और दो वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत का स्वाद मिला है। कई धुरंधर भी इस चुनाव में खड़े थे जिन्हें हार का समाना करना पड़ा है तो कई पुराने चेहरों को जनता ने नकार दिया है। इन चुनावों में पूर्व विधायक स्व. जुगुल किशोर बागरी के बेटे और जिला पंचायत उपाध्यक्ष रह चुके पुष्पराज बागरी और उनके छोटे भाई की पत्नी वंदना बागरी को हार का मुंह देखना पड़ा है। इसी तरह से कांग्रेस के में शामिल बबलू बागरी को भी हार नसीब हुई है।

सतना की दमदार महिला नेत्रियों में से एक रैगांव विधायक के लिए भाजपा से दावेदारी करने वाली पूर्व जिला पंचायत सदस्य रह चुकी रानी बागरी का पूरा परिवार चुनाव में खड़ा था जिसमें रानी बागरी स्वयं उनके पति नत्थू लाल बागरी और बेटी प्रियंका बागरी भी सदस्य का चुनाव लड़ी थी जिन्हें भी हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह भाजपा जिला उपाध्यक्ष, पूर्व जिला पंचायत सदस्य और भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष रह चुकीं किरण सेन, तीन बार भाजपा जिला महामंत्री रहीं सरोज गूजर का भी दमखम नहीं दिखा और उन्हें हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अपनी जीत को लेकर शुरू से ही इंटरनेट मीडिया में दावा करने वाले जिला कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल सिंह को भी जिला पंचायत सदस्य का पद नसीब नहीं हो पाया और उन्हें जनता ने नकार दिया। इसी तरह कांग्रेस महिला विंग की पदाधिकारी रहीं प्रभा जित्तू बागरी को भी हार नसीब हुई है।

पुराने सदस्यों को जनता ने नकारा 

पिछली बार जिला पंचायत के सदन में अपनी प्रभावी उपस्थिति दिखाने वाले कई चेहरों को जनता ने नकार दिया है। इनमें अभिषेख सिंह मिट्ठू, संजय आरख, राजेश्वरी पटेल, शांतिभूषण चुनाव हार चुके हैं तो पूर्व सदस्य रामदीन वर्मा की पत्नी भी चुनाव हार चुकी हैं।

अध्यक्ष की तैयारी शुरू 

जिला पंचायत सदस्य के सारणीकरण के बाद 15 जुलाई को परिणामों की घोषणा हुई जिसमें 14 भाजपा समर्थित प्रत्याशी जीते हैं। तो सात कांग्रेस से और तीन बसपा व दो अन्य प्रत्याशी हैं। अब जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए जी तोड़ मेहनत शुरू हो गई है। इस बार अध्यक्ष पद की सीट अनुसूचित जनजाति मुक्त होने से इस पद के लिए किसी एक को चुनना है। जिसे लेकर पार्टी में भी मंथन शुरू हो गया है।

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