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Satna: आदिवासी को पता ही नहीं और बिक गई उसकी करोड़ों की जमीन..! कलेक्टर तक पहुंची शिकायत 

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ जिले में जमीन खरीद फरोख्त के बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं। जिसमें रसूखदारों से लेकर पूर्व कलेक्टर तक का नाम सामने आ चुका है जिसकी जांच में सत्यता पाने पर मुख्यमंत्री ने खुले मंच से सतना के पूर्व कलेक्टर अजय कटेसरिया पर कार्रवाई का ऐलान चित्रकूट में किया था। लगातार जमीनों में फर्जीवाड़े की सूची सतना में बढ़ती जा रही है। कुछ इसी प्रकार एक आदिवासी परिवार ने प्रशासन से अपनी जमीन दिलवाने की गुहार लगाई है जिसमें आज बारात घर तन गया है और उक्त जमीन के अनुसार उसे पता ही नहीं चला कि उसकी करोड़ो रुपये कीमती जमीन बिक चुकी है। अपनी पैतृक जमीन गंवाने के बाद अब पीड़ित उमेश आदिवासी ने अब प्रशासनिक अधिकारियों के सामने इस जमीन फर्जीवाड़े पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए न्याय की मांग की है।

कलेक्टर को सौंपा शिकायती पत्र

शहर के बाईपास रोड में स्थित संगम बेला बारात घर की जमीन का मूल स्वामी होने का दावा करते हुए एक उमेश आदिवासी ने शिकायत दर्ज कराई है कि उसकी जमीन को कब बेच दिया गया उसे पता ही नहीं चला। दिलचस्प बात यह है कि जिस आदिवासी के नाम पर बिक्री दिखाई गई है उसे भी इस बात की हवा तक नहीं लगी कि उसके नाम कब करोड़ों की जमीन हो गईं ओर उसने फिर कब बेच दी। यदि कलेक्टर को दिए शिकायती पत्र के आरोप सही हैं तो स्पष्ट है कि आदिवासी परिवारों के साथ छल किया गया है। हैरानी की बात यह है कि जमीन खरीदने-बेचने की इस समूची प्रक्रिया में राजस्व महकमें की भूमिका जांच के दायरे में है।

भूमाफिया द्वारा बेचने का लगाया आरोप

विगत दिवस ग्राम डिलीरा निवासी उमेश आदिवासी पिता स्व . रमेश आदिवासी ने कलेक्टर को सौंपे शिकायती पत्र सौंपा जिसमें उसने बताया कि उसकी पैतृक जमीन को उसके व उसके पिता की बिना किसी अनुमति के खरीद और बेच लिया गया है। रघुराजनगर तहसील अंतर्गत हल्का डिलीरा स्थित आराजी क्र . 533 , 315, 318, 317, 367, 369 व 375 के कूट रचित दस्तावेज तैयार कर भूमाफियाओं द्वारा बेचने का आरोप लगाते हुए उमेश ने बताया कि ये आराजियां उसकी पैतृक संपत्तियां हैं, जिनका वह विधिक उत्तराधिकारी है। इसकी पुष्टि राजस्व रिकार्ड में 1958-59 के खतौनी -खसरे से भी होती है। इस मामले में भू – अभिलेख के दस्तावेज भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि उमेश की यह पैतृक भूमि है। राजस्व कार्यालय के दस्तावेजों में श्यामलाल पिता चैता कोल और रमेश कुमार पिता बैशाखू के बीच हुए बंटवारे की रेवेन्यू आर्डर शीट भी इस बात को प्रमाणित करती है कि शिकायतकर्ता उमेश वाकई उक्त आराजी का विधिक उत्तराधिकारी है। गौरतलब है कि उपरोक्त वर्णित आराजियों के कई अंशभाग का स्वामित्व बटवारे के बाद रमेश आदिवासी को मिला था जो उमेश के पिता थे। उमेश का आरोप है कि न तो उसके पिता ने किसी को जमीन बेची और न उसने फिर इन आराजियों की किसने बेची ओर खरीदी कर बड़े-बड़े भवन तनवा दिए।

इनका कहना है

मैं तब से राजस्व कार्यालयों के चक्कर लगा रहा हूं जब संगम बेला की बुनियाद डाली जा रही थी लेकिन मेरी आवाज किसी प्रशासनिक अधिकारियों ने नहीं सुनी और देखते ही देखते मेरी जमीन पर बड़े- बड़े भवन तन गए। नए कलेक्टर की कार्यशैली देखते हुए अब इनसे कार्रवाई की उम्मीद है इसलिए फिर शिकायत की है।

-उमेश आदिवासी, फरियादी

“यह मामला सिविल कोर्ट के अधीन आता है, जमीन से जुड़े दस्तावेजों, वसीयतनामा तथा खरीदी-बिक्री के कागजातों की जाँच-पड़ताल तथा सत्यापन के निर्देश सिविल कोर्ट देता है, अतः प्रकरण को सक्षम न्यायालय देखेगा।”

अनुराग वर्मा, कलेक्टर सतना

“यह सही है कि इस आशय की शिकायत आई है। दस्तावेजों की पड़ताल से साफ है कि उक्त जमीन की खरीदी-बिक्री नियमन की गई है और कई साल पूर्व बाकायदा अनुमति लेकर ही जमीन को बेचा गया है। अभी एक शिकायत आई है जिसके बिंदुओं को हम देख रहे हैं।”

-बीके मिश्रा, तहसीलदार

मेरे द्वारा खरीदी गई जमीन पर किसी का हक नही हैं। यह जमीन पूरी नियमानुसार खरीदी गई है और जो भी आरोप लगा रहा है वह गलत है।

-दीपक अग्रवाल, मालिक संगम बेला

 

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