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Rewa: भगवान को तप नहीं, भक्ति, प्रेम पसंद : सत्यांशु महाराज

बसामन मामा के निकट पुरवा में बह रही भागवत कथा की रसधार

रीवा,भास्कर हिंदी न्यूज़/ ब्रह्म शक्ति बसामन मामा धाम के पास ग्राम पुरवा में स्वर्गीय दिलभरण प्रसाद त्रिपाठी पंडा बाबा की स्मृति पर चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में पांचवे दिन बुधवार को गोवर्धन पूजा के बारे में बताया गया।

वृंदावन धाम से आए कथावाचक राष्ट्रीय संत सत्यांशु जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान का जो उद्देश्य था। पृथ्वी पर पाप का विध्वंस कर धर्म की स्थापना करना। उसी उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए भगवान वृंदावन से मथुरा गए। जिस प्रकार मथुरा नरेश कंस का पाप बढ़ गया था और किस तरह कंस के सपने में हर समय भगवान ही उसे दिखाई देते थे। उसने देवीकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया था। उनकी हर संतान को मार देता था लेकिन आठवीं संतान को वासुदेव गोकुल छोड़ आए थे। इसके बाद कंस को यही भय सताने लगा था कि देवकी की संतान ही उसका वध करेगी इसी के भय से मथुरा और आसपास के सभी बच्चों की कंस हत्या करवा दी थी। भगवान श्री कृष्ण को भी अपने सेनापति के माध्यम से मथुरा में एक मेला देखने के बहाने बुलाया था कि वह उसका वध कर सके और अक्रूर ने नंद गांव जाकर नंद बाबा के भगवान श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा ले जाने के लिए कहा नंदबाबा व यशोदा के मना करने पर गोपियों के भी मना करने के बावजूद भगवान श्री कृष्ण और बलराम मथुरा गए। और उन्होंने यहां पहुंच कर कंस का उद्धार किया।
भागवत कथा के दौरान देवर्षि नारद के मथुरा में प्रवेश, राजा कंस का धनुष यज्ञ, अक्रूर के माध्यम से संदेश भेजना, कृष्ण-बलराम को मथुरा बुलवाना, रज्जाक धोबी का उद्धार, सुदाम माली और कुब्जा पर भगवान ने कृपा की। तमाम उपायों को धता बताते हुए भगवान कृष्ण का यज्ञ स्थान से छलांग लगा कर सीधे राजा कंस तक पहुंचना, इसके बाद अत्याचारी कंस के केश खींचते-घसीटने उसे यज्ञ मंडप से बाहर लाकर उसका वध करने तक का वृतांत महाराज ने अच्छे समझाया।

भगवान को ज्ञान, तप, योग प्रिय नहीं है, बल्कि भावभरी भक्ति, प्रेम पसंद है। यह बातें गांव पुर्वा में श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन व्यास सत्यांशु महाराज ने उद्धव-गोपी संवाद का मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि कृष्ण सभी की आत्मा है, उनसे जीव आत्मा का कभी वियोग नहीं हो सकता। उन्हें तो प्रेम से वशीभूत किया जा सकता है। प्रभु के निमत गोपियों के अलौकिक प्रेम को देखकर उद्धव के ज्ञान अहंकार का नाश हो गया था। कथा स्थल पर श्रीकृष्ण-रुक्मिणी का विवाह हुआ। कथा के दौरान रुकमणी विवाह के उपलक्ष में पंडाल में मौजूद सैकड़ों श्रद्धालुओं ने नृत्य किया। इस मौके पर सतनारायण चतुर्वेदी, विंधेश्वरी त्रिपाठी मनभरण त्रिपाठी सीताराम त्रिपाठी जेपी द्विवेदी सरस्वती त्रिपाठी संतोष मिश्रा अवनीश त्रिपाठी आशीष त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।

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