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संपूर्ण जिले में मनाया गया जनजातीय गौरव दिवस, आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में हुए कार्यक्रम

सतना,भास्कर हिंदी न्यूज़/ संपूर्ण देश में 15 नवंबर को प्रथम जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने के क्रम में सतना जिले के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों एवं जनपद पंचायतों में उत्साह पूर्वक विविध कार्यक्रम आयोजित कर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनाई गई।

मझगवां के आदिवासी बाहुल्य ग्राम गौहानी के हाई स्कूल में जनजातीय वर्ग के छात्र-छात्राओं एवं युवाओं ने आकर्षक रूप से पारंपरिक गीत और नृत्य के कार्यक्रम प्रस्तुत किए। मझगवां तहसीलदार नितिन झोंड़ की उपस्थिति में आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य स्तरीय जनजातीय गौरव दिवस के समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संबोधन को स्क्रीन पर आदिवासी भाई बहनों द्वारा देखा सुना गया।

रामपुर बघेलान विकासखंड के हनुमानगंज स्टेडियम में धूमधाम से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया। यहां आदिवासी युवाओं द्वारा सिधौली से रामपुर बघेलान मुख्य बाजार होते हुए हनुमानगंज स्टेडियम तक बाइक रैली भी निकाली गई। अमरपाटन विकासखंड में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती स्टेडियम में उत्साह पूर्वक मनाई गई। आदिवासी समुदाय की भारी संख्या के बीच भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा में माल्यार्पण कर बाइक रैली भी निकाली गई।

फसल अवशेष नरवाई न जलायें, यह जैविक खाद बनाने में है उपयोगी

उप संचालक कृषि ने जिले के किसानों से नरवाई न जलाने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि फसल काटने के बाद बचे हुए अवशेष (नरवाई) न जलाएं। नरवाई जलाने से एक ओर जहां खेतों में अग्नि दुर्घटना की आशंका रहती है, वहीं मिट्टी की उर्वरकता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इसके साथ ही धुएँ से कार्बन-डाय-ऑक्साइड से तापमान बढ़ता है और वायु प्रदूषण भी होता है। मिट्टी की उर्वरा लगभग 6 इंच की ऊपरी सतह पर ही होती है। इसमें खेती के लिए लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं। नरवाई जलाने से यह नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता है। नरवाई जलाने के बजाए यदि फसल अवशेषों को एकत्रित करके जैविक खाद बनाने में उपयोग किये जाय तो यह बहुत लाभदायक होगा। नाडेप तथा वर्मी विधि से नरवाई से जैविक खाद आसानी से बनाई जा सकती है। इस खाद में फसलों के लिए पर्याप्त पोषक तत्व रहते हैं। इसके आलावा खेत में रोटावेटर अथवा डिस्क हैरो चलाकर भी फसल के बचे हुए भाग को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण सुरक्षा हेतु नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के क्रम में वायु (प्रिवेन्शन एण्ड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन) एक्ट 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों (विशेषतः धान एवं गेहूँ की फसल) की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेषों को जलाये जाने को प्रतिबंध किया गया है।

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