शहडोल,भास्कर हिंदी न्यूज़/ कोरोना संकट से उबरने के 17 महीने बाद एक सितंबर से स्कूलों में रौनक लौट आई है। कक्षा छठवीं से बारहवीं तक की कक्षाएं लगना प्रारंभ हो गई हैं। पहले दिन जो बच्चे लंबे समय के बाद स्कूल पहुंचे उन्होंने सबसे पहले पूरे स्कूल को जी भर कर देखा। इसके बाद बच्चों ने अपने शिक्षकों को निहारा। जिस क्लास में उनको बैठाया गया उस क्लास को बच्चे ऐसे घूरकर देख रहे थे कि जैसे उनको एक सपना सा लग रहा हो। लंबे समय बाद जब बच्चे अपने स्कूल पहुंचे तो उनको बेहद अच्छा लग रहा था। पहले दिन कम बच्चे ही पहुंचे लेकिन जितने पहुंचे सबने जमकर पढ़ाई की। स्कूल परिसरों में चहल पहल नजर आई तो वहीं स्कूल प्रबंधन और शिक्षक भी उत्साहित होकर पढ़ाते नजर आए।
निजी स्कूलों में नजारा
जिला मुख्यालय के कुछ निजी स्कूलों का नजारा बहुत ही शानदार था। कांवेंट स्कूल में बच्चों को गेट पर हाथ सैनिटाइज कराए जा रहे थे। यहां पर एक सितंबर से सिर्फ कक्षा 9वीं से 12वीं तक के पचास प्रतिशत बच्चों को ही बुलाया गया था। बताया गया कि एक सप्ताह बाद कक्षा छठवीं से आठवीं तक के बच्चों के लिए भी कक्षाएं लगाई जाएंगीं। वहीं पुलिस लाइन के सेंट्रल अकेडमी स्कूल में भी कक्षा 6वीं से 8वीं तक के बच्चे बहुत उत्साह के साथ मास्क लगाकर कक्षा में बैठकर पढ़ाई करते दिखाई दिए। जिले के सभी निजी स्कूलों ने अपने यहां बेहतर व्यवस्था की हुई थी।
सरकारी स्कूल अभी भी पुराने ढर्रे पर
सरकारी माध्यमिक स्कूल अभी भी अपनी पुरानी लीक पर ही चल रहे हैं। यहां पर पहले दिन बच्चे पढ़ने पहुंचे लेकिन न तो बेंचों की धूल साफ कराई गई थी और न ही उनको बेहतर माहौल दिया गया। जिला मुख्यालय के माध्यमिक स्कूल रघुराज क्रमांक एक में एक ही क्लास में तीनों कक्षाओं के बच्चों को बैठाया गया था। शिक्षक एक कक्ष में कुर्सी डालकर बैठे गप्प मार रहे थे तो वहीं जिस कमरे में बच्चों को बैठाया गया वहां पंखा भी बंद था। इस तरह का माहौल यदि सरकारी स्कूल देंगे तो बच्चों का मन स्कूल आने में कैसे लगेगा।
शहर के स्कूलों तक का निरीक्षण नहीं
जिला मुख्यालय में चल रहे सरकारी स्कूल हों या निजी स्कूल किसी भी स्कूल का निरीक्षण करने शिक्षा विभाग और ट्राइवल विभाग के अधिकारी नहीं निकले। जिले के 10 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में को छोड़ दें तो बाकी जगह बेहद खराब स्थिति है। प्राचार्यों की मनमानी हावी है। कुर्सी से चिपके रहने की आदत हो गई है जिसके चलते वे कक्षाओं की दुर्दशा और बच्चों की दशा देखने की जेहमत नहीं उठाते हैं। स्कूल राजनीति के अड्डे बन गए हैं। इनकी स्थिति को सुधारने की जरूरत है।