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यहां उल्टे घूमते हैं घड़‍ियों के कांटे, महीनों और वार के नाम भी अलग

amazing m.p: जबलपुर/ गोंडी संस्कृति की घड़ियों के कांटे दुनिया से इतर अपनी धुरी पर उल्टी दिशा में चलते हैं। आम घड़ी के विपरीत गोंडी घड़ी के कांटे बाईं से दाईं ओर समय को प्रदर्शित करते हैं। उनका अपना पंचांग भी है, जिसमें सप्ताह के दिनों के नाम से लेकर तिथि के लिए विशेष नाम हैं। आज भी देशभर में रहने वाले गोंड आदिवासी समाज के लोग बहुधा इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं। खास बात यह है कि गोंडी संस्कृति की सैंकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा का वाहक जबलपुर शहर ही है। यहीं से पंचांग का प्रकाशन और घड़ियों का निर्माण होता है। मंडला, डिंडौरी, छिंदवाड़ा, बालाघाट जैसे जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में भी शहर से ही पंचांग भेजा जाता है।

सप्ताह के दिन ऐसे

  • पूर्वानेट- रविवार
  • नल्लानेट- सोमवार
  • सुर्कानेट- मंगलवार
  • सुर्वानेट- बुधवार
  • मूठानेट- गुरुवार
  • नीलूनेट- शुक्रवार
  • आरुनेट- शनिवार

कुछ ऐसे हैं महीनों के नाम

  • पदोमान- जनवरी
  • पादुमान- फरवरी
  • पांडुमान- मार्च
  • उदोमान- अप्रैल
  • चिंदोमान- मई
  • कोंटोमान- जून
  • नालोमान- जुलाई
  • सयोमान- अगस्त
  • सरोमान- सिंतबर
  • यरोमान- अक्टूबर
  • अरोमान- नवंबर
  • नरोमान- दिसंबर

हड़प्पा- मोहनजोदड़ों का प्रभाव

गोंड आदिवासी जिस लिपि का उपयोग करते हैं। उसके हड़प्पा- मोहनजोदड़ों से जुड़े होने के प्रमाण मिलते हैं। इसलिए यह लिपि प्राचीन मानी गई है। गोंडी पंचांग में तारीखें भी रोचक हैं। जैसे- एक तारीख को उन्दी तो 30 तारीख को गोंड मंडू कहते हैं। गोंडी साहित्य और उत्पादों से जुड़े दुकान संचालक आशीष जैन के अनुसार वे पिछले 10 सालों से ये कार्य कर रहे हैं। मात्राओं को गोंडी साहित्य में कून्क और बाराखड़ी को पदण्ड खरींग कहा जाता है। इनके यहां गोंड समाज के मुख्य देवता बड़ा देव(दो हाथ वाले शंकर भगवान) और प्रतीक चिन्ह हाथी पर बैठे शेर के साथ बने ब्रेसलेट, बेल्ट, झंडे, घड़ियां मिलते हैं। इसके साथ ही गोंडी पंचांग, गोड़ी पहाड़ा, बाराखड़ी भी है। गोंडी रीति-रिवाजों पर आधारित गोंडी गाथा भी उपलब्ध है।

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