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अंग्रेजों की ‘चिपकू संस्कृति’ के हम कब तक रहेंगे गुलाम…!

(विशेष संपादकीय)

ऋषि पंडित
प्रधान संपादक

‘अंग्रेजियत’ का नया वर्ष 2022 से निकल कर हमारे सामने 2023 में प्रवेश करने को तैयार है। रविवार को सूर्योदय की अरुणिमा नए संकल्पों और ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की पुनि सोच’ के साथ सारे भारत वासियों की देहरी पर है। हर साल की तरह वर्ष के पहले दिन और फिर आगे के कुछ दिनों के लिए सभी का संकल्प पत्र अपनी-अपनी योग्यता और क्षमता के साथ दिमाग में फीड हो गया है। सब जानते हैं की संकल्पों की रंगत दिन बीतने के साथ ही परछाई की तरह साथ छोड़ती जाएगी, और फिर अगले नए वर्ष में नए रूप में सामने खड़ी दिखाई देगी। “अंग्रेजियत” की यह परंपरा हमारी सनातनी संस्कृति में जोंक की तरह चिपक गयी है जो धीरे धीरे भारत की संस्कृति का खून चूसती जा रही है और युवा पीढ़ी अंग्रेजों के कैलेंडर को पाल-पोस रही है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से नववर्ष का आरंभ होता है।

क्या कलेण्डर बदल देना ही नयापन है? पर मूल में तो सबकुछ कल भी वही था, आज भी वही है और कल भी वही होगा। जीवन का अन्दाज है-जो था, जो है, जो होगा, बस, सबकी संयोजना, संकल्पना, व्यवस्था के बदलाव का ही एक नाम है- नया जीवन, नया वर्ष और नयी शुरूआत। बीते कल के अनुभव और आज के संकल्प से भविष्य को रचें। तभी सार्थक होगा नएवर्ष की अगवानी का यह पल-यह अवसर।

अपेक्षा एक ऐसा शब्द है, जो हममें आने वाले बदलावों के साथ-साथ बदलता रहता है। अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने का सबसे पहला और सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आप इस तथ्य को आत्मसात कर लें कि आप जो बचपन या किशारोवस्था में होते हैं, वही युवावस्था या बुढ़ापे में नहीं होते, यह बात तो स्पष्ट है। यहां तक कि जो आप कुछ घंटों पहले थे, उसमें भी बदलाव आ चुका होता है। अपने व्यक्तित्व को सर्वांगीण आकार देने के संकल्प के साथ नए वर्ष का स्वागत हम इस सोच और संकल्प के साथ करें कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। बीते वर्ष की कमियों पर नजर रखते हुए उन्हें दोहराने की भूल न करने का संकल्प लेना है।

दुनिया में सबसे बड़ा आश्चर्य है अपने आपको नहीं जानना। आदमी अपने आपको नहीं जानता, अपने आपको नहीं देखता, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है। यह प्रश्न महाभारतकाल में भी पूछा गया था-‘किमाश्चर्यमत: परम’ दूसरों को जानने वाला आदमी अपने आपको नहीं जानता, दूसरों को देखने वाला स्वयं को नहीं देखता, क्या यह कम आश्चर्य है? प्रसिद्ध लोकोक्ति है कि अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं।

नय वर्ष की अगवानी में सबसे कठिन काम है-दिशा-परिवर्तन। दिशा को बदलना बड़ा काम हैं लेकिन आदमी दिशा नहीं बदलता, दिशा वही की वही बनी रहती है। आदमी एक ही दिशा में चलते-चलते थक जाता है, ऊब जाता है। किन्तु दिशा बदले बिना परिवर्तन घटित नहीं होता।

जिन्दगी को एक ढर्रे में नहीं, बल्कि स्वतंत्र पहचान के साथ जीना चाहिए। जब तक जिंदगी है, जिंदादिली के साथ जीना जरूरी है। बिना उत्साह के जिंदगी मौत से पहले मर जाने के समान है। उत्साह और इच्छा व्यक्ति को साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती है। जिस तरह सिर्फ एक डिग्री के फर्क से पानी भाप बन जाता है और भाप बड़े-से-बड़े इंजन को खींच सकती है, उसी तरह उत्साह हमारी जिंदगी के लिए काम करता है। इसी उत्साह से व्यक्ति को सकारात्मक जीवन-दृष्टि प्राप्त होती है। जैसी हमारी जीवन दृष्टि होगी, दूसरे लोग भी हमें वैसे ही दिखाई देंगे। यदि हम अपनी प्रवृत्ति में सकारात्मक जीवन दृष्टि विकसित करें तो हमें दूसरों में खूबियां अधिक दिखाई देने लगेंगी।

संकल्प, व्यक्ति को नैतिक रुप से तटस्थ और अपने सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान बने रहने की शक्ति प्रदान करता है। दुगुर्णों पर विजय और आने वाले समय के लिए हमारा संकल्प हमें मानसिक रूप से तैयार करता है। निश्चय ही, हमारा कुछ संकल्प व्यक्तिगत बुराइयों पर विजय दिला सकता है, तो कुछ संकल्प सामाजिक बदलाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

तो आइये एक बार फिर अंग्रेजों की इस ‘चिपकू संस्कृति‘ का बोझ उठाते हुए एक-दूसरे को नए वर्ष की औपचारिक शुभकामनाएं देते हैं। वर्ष 2023 आप सभी के लिए मंगलकारी हो, “भास्कर हिंदी न्यूज़ परिवारकी ओर से सभी देशवासियों को अंग्रेजों की गुलामी के प्रतीक इस कथित नए साल की मुबारकबाद…। हमे तो सनातन संस्कृति की अमूल्य निधि ‘गुड़ी पड़वा’ की प्रतीक्षा है जब हमारे भारत देश का नूतन वर्ष प्रारंभ होता है और हम सब ईश्वर की शरण में रह कर सभी के लिए ह्रदय से मंगलकामना करते हैं।

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