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Annakoot : ऐसे शुरू हुई अन्नकूट की परंपरा, जानिए भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने का कारण

Tyohar annakoot 2022 this is how the tradition of annakoot started know the reason for offering 56 bhog to lord krishna: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 26 अक्टूबर बुधवार को मनाया जा रहा है। गोवर्धन पूजा के दिन कई स्थानों पर अन्नकूट महोत्सव आयोजित किया जाता है। इस महोत्सव में भगवान कृष्ण को तरह-तरह के 56 पकवानों का भोग लगाया जाता है। साथ ही सामूहिक भोज का आयोजन भी किया जाता है। यह परंपरा काफी पुरानी है। काफी पुराने समय से चली आ रही है। आइए जानते हैं कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई और भगवान कृष्ण को छप्पन भोग क्यों लगाए जाते हैं।

से शुरू हुई थी अन्नकूट की परंपरा

प्रचलित कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण जब वृंदावन वासियों को देवराज इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा करने की सलाह दी थी तो सभी ने उनकी बात मान ली थी। इस बात को जानकर देवराज इंद्र बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरु कर दी। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया था। करीब 7 दिन तक गांव वाले उसी पर्वत के नीचे बैठे रहे। तब देवराज इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। 7 दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा। इसके बाद से ही प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर अन्नकूट महोत्सव मनाया जाने लगा।

श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने का कारण

मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण ने लगातार 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा था। इस दौरान उन्होंने कुछ भी खाया पिया नहीं था। 7 दिनों के बाद आठ पहर के हिसाब से माता यशोदा और गांव वालों ने उनके लिए 56 पकवान बनाएं और श्रीकृष्ण को खिलाएं। तभी से छप्पन भोग की परंपरा चली आ रही है। वहीं एक कारण यह भी है कि भगवान विष्णु के अनेक आसन हैं। जिसमें से कमल भी एक आसन है। जिस कमल पर भगवान विष्णु बैठते हैं, उसकी पंखुड़ियों की संख्या 56 है। इसलिए भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाए जाते हैं।

यह हैं 56 भोग

सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चंद्रकला (पगीहुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूनाड़ी (लौंगपूरी), खंडमंडल (खुरमा), भक्त (भात), सूप (दाल), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढया सौंफयुक्त, दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (आधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), परिष्टाश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), दधि (दही), गोघ्रत, मंडूरी (मलाई), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही की कढ़ी), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), हैयंगपीनम (मक्खन), फल, तांबूल, मोहनभोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल, सिखरिणी सिखरन, अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), कूपिका, पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय मोहन

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