Appointment on compassionate grounds is not a right only concession say supreme court in its landmark decision: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति अधिकार नहीं, बल्कि रियायत है। ऐसे रोजगार देने का उद्देश्य, प्रभावित परिवार को अचानक संकट से उबारने में सक्षम बनाना है। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि कर्मचारी की मृत्यु के 24 साल बाद प्रतिवादी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की हकदार नहीं होगी। अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट किए गए कानून के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत सभी उम्मीदवारों को सभी सरकारी रिक्तियों के लिए समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के सामने समानता है और अनुच्छेद 16 सरकारी रोजगार के मामलों में अवसर की समानता से संबंधित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में पिछले हफ्ते केरल हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के फैसले को भी रद्द कर दिया।डिवीजन के फैसले में सिंगल जज के उस फैसले की पुष्टि की गई थी, जिसमें फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड और अन्य को अनुकंपा के आधार पर एक महिला की नियुक्ति के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया गया था।
क्या था मामला
आदेश के मुताबिक महिला के पिता फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड में कार्यरत थे और ड्यूटी के दौरान ही उनकी अप्रैल 1995 में मृत्यु हो गई थी। बेंच ने कहा कि उनकी मृत्यु के समय उनकी पत्नी नौकरी कर रही थीं, इसलिए याचिकाकर्ता अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की पात्र नहीं हैं। जब कर्मचारी की 1995 में मृत्यु हुई थी, तब उसकी बेटी नाबालिग थी। वयस्क होने पर उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। अदालत ने यह भी नोट किया कि उनकी मृत्यु के लगभग 14 साल बाद उनकी बेटी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था।