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पूरे श्रद्धाभाव से मनाई गई देवउठनी ग्यारस,पूजा-अर्चन के बाद जागे देव, वैवाहिक मुहूर्त शुरू

रंगोली बना कर सजाये गये घरों के द्वार
शाम को जलाये गये दीप, फूटे पटाखे, बांटा प्रसाद

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज/ बुधवार को पूरे देश के साथ साथ विंध्य क्षेत्र में भी भगवान विष्णु के जागने का पर्व देवउठनी ग्यारस बड़े धूमधाम और पूरी श्रद्धा के साथ मनाया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के साथ उठो देव.बैठो देव पांवरिया चटकाओ देव की प्रार्थना की एवं दीप जलाये। देवउठनी ग्यारस को छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दौरान लोगों ने घरों, कार्यालयों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में पूजा अर्चना करते हुए भगवान विष्णु से परिवार की मंगल कामना की।

शहर के बाजार में बुधवार को भी खरीदी के लिए खासी भीड़ उमड़ी। लोगों ने गन्ना, शकरकंद, सिंघाड़े तथा दूसरी पूजा पाठ की सामग्री भी खरीदी। बाजार में खरीदी के दौरान कई जगह कोरोना गाइडलाइन के धुरे उड़े। मुख्य बाजार पन्नीलाल चौक, जयस्तंभ चौक, शास्त्री चौक, बिहारी चौक, धवारी चौक, में प्रसाद एवं फूलमालाओं की अच्छी खरीददारी लोगों ने की। कोरोना वायरस के कहर के बाद शांत हुए बाजार में धनतेरस, दीपावली के बाद छोटी दिवाली में फिर से जान आ गई।

घरों व प्रतिष्ठानों में दीप जलाने के बाद लोगों ने पटाखे फोड़े। हालांकि पटाखा व्यवसाईयों के मुताबिक मंहगाई और कोरोना के चलते पटाखों की बिक्री कम हुई। दीपावली में बेचने के लिए लाये गये पटाखे ही स्टाक में रखे रह गये जिन्हें दुकानदारों ने देवउठनी ग्यारस को औने-पौने दामों में बेचकर अपनी जमापूंजी निकालने की कोशिश की। देवउठनी एकादशी पर गन्ना, ज्वार, अमरूद, सिंघाड़े, शकरकंद जैसे फसलों के पूजन का भी विशेष महत्व होता है इस लिए कई जगह गन्ना और ज्वार के भुट्टों का मंडप सजाया गया। श्रद्धालुओं ने गन्ना और ज्वार से बनाये गये मंडप की परिक्रमा लगाई और देवों को उठाया। इस दौरान तुलसी-सालिगराम का विवाह भी कराया गया।

देवों के उठते ही शादियों का मुहूर्त शुरू

देवउठनी ग्यारस से ही शादी- विवाह का सिलसिला भी शुरू हो गया। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंखासुर नामक राक्षस का वध करने के बाद थकावट दूर करने क्षीरसागर में चार माह के लिए सो गए थे। इसके साथ ही शुभ व मांगलिक कार्यों पर भी रोक लग जाती है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान जागे थे, तभी से देवउठनी ग्यारस पर देवों को उठाने की परंपरा है। बुधवार को मंदिरों के अलावा घरों में देव उठाए गए। भगवान को गन्ने और ज्वार से बने मंडप के नीचे बैठाकर उनका पूजन-अर्चन किया गया। देवों के उठने के साथ ही विवाह कार्यक्रम शुरू हो गए। पहला लग्न भी देवउठनी ग्यारस पर रहा, जिससे बैंडबाजों और शहनाइयों की गूंज भी सुनाई दी।

खूब बिके गन्ना, शकरकंद, सिंघाड़े और अमरूद

देवउठनी ग्यारस पर गन्नों के साथ ज्वार के भुट्टे,अमरूद, सिंघाड़े,शकरकंद तथा विभिन्न फल-सब्जियों का महत्व होता है। इसके चलते एक दिन पहले से गन्नों और पूजन.सामग्री के अस्थाई बाजार सज जाते हैं। शहर में जहां गन्ना 5 रुपये से लेकर 20 रुपये तक बिका। ज्वार के भुट्टे 20 रुपये तक बिक रहे थे जो गन्ना के मुकाबले महंगे लग रहे थे। वहीं फूल मालाएं 5 से 20 रुपये तक और पूजन सामग्री का पैकेट 30 से 40 रुपये तक में लोगों ने खरीदा।

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