Know how muhurta can change your destiny: digi desk/BHN/ग्वालियर/मुहूर्त को भारतीय ज्योतिष में किसी कार्य विशेष को प्रारंभ एवं संपादित करने हेतु एक निर्दिष्ट शुभ समय कहा गया है। ज्योतिष के अनुसार शुभ मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करने से कार्य बिना किसी रुकावट के और शीघ्र संपन्न होता है। चाहें प्रश्न शास्त्र हो या जन्म कुंडली दोनों ही मुहूर्त पर आधारित हैं। ज्योतिषाचार्य डा. सतीश सोनी के अनुसार मुहूर्त पंचांग के पांच अंगों अर्थात तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण द्वारा निर्मित होता है। पंचाग गणना के आधार पर शुभ और अशुभ मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। मुहूर्त को प्रत्येक कार्य के अनुसार भिन्न-भिन्न रुप में लिया जाता है।
मुहूर्त संस्कार
भारतीय संस्कृति के षोडश संस्कारों में मुहूर्त के विषय में मुहूर्त शास्त्र में पृथक रूप से वर्णन प्राप्त होता है। जिसमें यह बताया गया है कि तिथि, वार, नक्षत्र आदि के संयोग से भी मुहूर्त बनते हैं, जिनमें संस्कार एवं विशिष्ट कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी किए जा सकते हैं।
शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त वरदान स्वरुप होते हैं, विवाह, मुंडन, गृहारंभ शुभ कार्यों में मास, तिथि, नक्षत्र, योगादि के साथ लग्न की शुद्धि को विशेष महत्व एवं प्रधानता दी जाती है। तिथि को देह, चंद्रमा को मन, योग, नक्षत्र आदि को शरीर के अंग तथा लग्न को आत्मा माना गया है। इस प्रकार मुहूर्त का महत्व स्वयं में प्रर्दशित हो जाता है। मुहूर्त शास्त्र में कई प्रकार के शुभ मुहूर्ताें का वर्णन किया गया है, जैसे सर्वार्थसिद्धि योग, सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, राज योग, रविपुष्य योग, गुरुपुष्य योग, द्वि-त्रिपुष्कर योग, पुष्कर योग तथा रवि योग इत्यादि योग बताए गए हैं।
मुहूर्त संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य
मुहूर्त संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातों के विषय में ध्यान देना आवश्यक होता है। मुहूर्त में तिथियों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे रिक्त में कार्यों का आरंभ न करें तथा अमावस्या तिथि में मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब कोई भी ग्रह जिस दिन अपना राशि परिवर्तन कर रहा हो तो उस समय न किसी भी कार्य की योजना बनाएं और न ही कोई नया कार्य आरंभ करें। जब भी कोई ग्रह उदय या अस्त हो या जन्म राशि का या जन्म नक्षत्र का स्वामी यदि अस्त हो, वक्री हो अथवा शत्रु ग्रहों के मध्य में हो तो वह समय कार्य को करने के लिए उपयुक्त नहीं होता। मुहूर्त में इन सभी बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
कुंडली का मुहूर्त से संबंध
जन्म कुंडली अनुकूल मुहूर्त का निर्धारण करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जन्म समय की ग्रह स्थिति को बदला तो नहीं जा सकता, लेकिन शुभ समय मुहूर्त को अपना कर कार्य को सफलता की और उन्मुख किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली के दोषों के प्रभाव से बचने के लिए यदि अच्छी दशा में तथा शुभ गोचर में शुभ मुहूर्त का चयन किया जाए तो कार्य की शुभता में वृद्धि हो सकती है।
महत्व
किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है। हर शुभ मुहूर्त का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है। शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिए। चर, स्थिर लग्नों का ध्यान रखना चाहिए। जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है। यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है।