सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ राष्ट्रीय धन्वंतरी आयुर्वेदिक पुरूस्कार, जो कि विख्यात वैद्यों एवं आयुर्वेद विशेषज्ञों को प्रदान किया जायेगा। इसके संबंधित आवेदन ऑनलाईन प्रक्रिया अपनाते हुए किये जायेंगे। भारत का राजपत्र आयुर्वेद योग व प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्योपैथी (आयुष) मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय धन्वन्तरी पुरूस्कार का शुभारंभ किया गया है। इसमें प्रशस्ति पत्र, ट्रॉफी जिसमें धन्वन्तरी की मूर्ति और 5 लाख रूपये का नगद पुरूस्कार दिया जायेगा। इसका प्रमुख उद्देश्य प्रतिर्स्पधा के माध्यम से उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना है। पुरूस्कार की अधिक जानकारी के लिए आयुष मंत्रालय भारत सरकार की वेबसाईट पर उपलब्ध है।
पर्यावरण प्रबंधन पी.जी. डिप्लोमा कोर्स के लिये 25 अक्टूबर तक आवेदन आमंत्रित
एप्को इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज द्वारा एक वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एनवायरमेंट मैनेजमेंट पाठ्यक्रम 2021-22 के लिये 25 अक्टूबर, 2021 तक आवेदन आमंत्रित किये गये हैं। सामान्य श्रेणी के आवेदक का स्नातक स्तर पर 50 प्रतिशत और आरक्षित वर्ग का 45 प्रतिशत के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक है। आवेदक की आयु 31 दिसम्बर, 2021 तक 45 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिये। सामान्य वर्ग के आवेदक के लिये पाठ्यक्रम शुल्क 25 हजार और आरक्षित वर्ग के लिये 15 हजार निर्धारित की गई है। आवेदन-पत्र के साथ एक हजार रुपये का शुल्क जमा कराना होगा। पाठ्यक्रम की विस्तृत जानकारी के लिये www.epco.mp.gov.in या www.climatechange.mp.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।
रबी फसलों की बुवाई के लिए कृषकों को सलाह
कृषि विभाग ने जिलों के समस्त किसानों से आग्रह किया है कि रबी फसल की बुआई का समय प्रारंभ होने वाला है। जिले में रबी फसलों की बोनी अक्टूबर माह से दिसम्बर 2021 तक की जाती है। किसान को दो मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिए, पहला बीज तथा दूसरा उर्वरक। अगर गुणवत्ता पूर्ण है और उर्वरक का प्रयोग समुचित नहीं है तो फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए कृषक बन्धुओं को ध्यान रखना चाहिए कि कौन सी खाद, कब, किस विधि से एवं कितनी मात्रा में देना चाहिए। कृषि विभाग ने किसानों को दी गई सामयिक सलाह के तहत गेहूँ सिंचित हेतु नत्रजन फास्फोरस पोटाश तत्व (120ः60ः40) सिंचित पछेती बोनी (80ः40ः30) असिंचित गेहूँ (60ः30ः30) एवं चना एन.पी.के. (20ः60ः20) एवं गंधक 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपयोग में लाना चाहिए। कृषक बंधु डी.ए.पी. एवं यूरिया का बहुतायत से प्रयोग करते है। डी.ए.पी. की बढ़ती मांग, उंचे रेट एवं स्थानीय अनुपलब्धता से कृषकों को कई बार समस्या का सामना करना पड़ता है। परंतु यदि किसान डी.ए.पी. के स्थान पर अन्य उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, एन.पी.के.(12ः32ः16), एन.पी.के. (16ः26ः26) एन.पी.के. (14ः35ः14) एवं अमोनियम फास्फेट सल्फेट का प्रयोग स्वास्थ मृदा कार्ड की अनुशंसा के आधार पर करें तो वे इस समस्या से निजात पा सकते है।