NO Caste Census: digi desk/BHN/ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया है कि वह जातिगत जनगणना नहीं करवाएगी। इसके बाद देश में सियासी घमासान मच गया है। भाजपा के सहयोगी दलों के साथ ही विपक्षी दलों ने इस पर आपत्ति जताई है। आने वाले दिनों में यह मामला और उलझ सकता है। एनडीए में भाजपा की सहयोगी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने फैसला पर हैरानी व्यक्त की है। वहीं लालू यादव ने कहा है कि भाजपा और आरएसएस पिछड़ों और दलितों की भलाई के खिलाफ हैं। जानिए पूरा मामला-
बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया, केन्द्र सरकार द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना कराने से साफ तौर पर इन्कार कर देना यह अति-गंभीर व अति-चिन्तनीय, जो भाजपा के चुनावी स्वार्थ की ओबीसी राजनीति का पर्दाफाश व इनकी कथनी व करनी में अन्तर को उजागर करता है। सजगता जरूरी। एससी व एसटी की तरह ही ओबीसी वर्ग की भी जातीय जनगणना कराने की माँग पूरे देश में काफी जोर पकड़ चुकी है, लेकिन केन्द्र का इससे साफ इन्कार पूरे समाज को उसी प्रकार से दुःखी व इनके भविष्य को आघात पहुँचाने वाला है जैसे नौकरियों में इनके बैकलॉग को न भरने से लगातार हो रहा है।
NO Caste Census: क्या कहा केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में
केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 2021 में जाति जनगणना नहीं की जा सकती है और सोच समझकर ही इसे हटाने का फैसला किया गया है। जनगणना में एससी और एसटी जातियों की जनगणना की जाती है और वह इस बार भी होगी, लेकिन इसके अलावा किसी अन्य जाति की गणना इस जनगणना में नहीं होगी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि महारष्ट्र सरकार को पिछड़े वर्ग के नागरिक (BCC) पर जानकारी इकट्ठी करने को कहा गया है। इसके जवाब में ही केन्द्र सरकार ने यह बात कही है।
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि “जनगणना में 1951 से एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों को आज तक शामिल नहीं किया गया है”।
इस वजह से जातिगत गणना नहीं कर रही सरकार
इसके हलफनामे में कहा गया है कि “जब आजादी के बाद पहली बार 1951 की जनगणना की तैयारी चल रही थी, भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर जातिगत नीतियों को हतोत्साह करने का फैसला किया था। यह निर्णय लिया गया कि सामान्य तौर पर, कोई जाति/जनजाति की पूछताछ नहीं की जानी चाहिए और ऐसी पूछताछ संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित अनुसूचित जातियों और जनजातियों तक सीमित होनी चाहिए।
अन्य राजनीतिक दल कर रहे जातिगत जनगणना की मांग
शीर्ष अदालत में केंद्र की दलील ऐसे समय में आई है जब उसे विपक्षी दलों और यहां तक कि जदयू जैसे सहयोगियों से जातिगत जनगणना की मांग का सामना करना पड़ रहा है। 20 जुलाई को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था: “भारत सरकार ने नीति के रूप में फैसला किया है कि जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति-वार आबादी की गणना नहीं की जाएगी।”
जातिगत गणना में क्या है परेशानी
सुप्रीम कोर्ट में, केंद्र ने कहा कि “जनसंख्या जनगणना जाति पर विवरण एकत्र करने के लिए आदर्श साधन नहीं है। संचालन संबंधी कठिनाइयां इतनी अधिक हैं कि एक गंभीर खतरा है कि जनगणना के आंकड़ों की बुनियादी अखंडता खत्म हो सकती है और मौलिक आबादी स्वयं विकृत हो सकती है”। सरकार ने कहा कि एससी और एसटी सूची के विपरीत, जो विशेष रूप से केंद्रीय विषय हैं, अन्य पिछड़ा वर्ग की कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सूची हैं। कुछ राज्यों में, अनाथ और बेसहारा ओबीसी के रूप में शामिल हैं। कुछ अन्य मामलों में, ईसाई धर्म में परिवर्तित एससी को ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसके लिए गणक को ओबीसी और एससी दोनों सूचियों की जांच करने की आवश्यकता होगी, जो उनकी क्षमता से परे है।