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मोदी-शाह की जोड़ी पर भारी पड़ी दीदी, जानिए भाजपा के हार की 5 प्रमुख वजहें

West bengal vidha sabha election 2021: digi desk/BHN/पश्चिम बंगाल में तीसरी टीएमसी की सरकार बन रही है। ममता बनर्जी अब फिर राज्य की कमान संभालेंगी। दीदी को हराने के लिए भाजपा ने बड़ी मेहनत की थी। पार्टी के दिग्गज नेताओं की फौज सीएम बनर्जी को हराने मैदान में उतर गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत बड़े नेताओं की चुनावी सभाएं हुई। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी कर दी थी कि बीजेपी 100 सीट भी जीत नहीं पाएंगी। जबकि भाजपा 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का दावा कर रही थी। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि पीएम मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों के चुनाव प्रचार और सत्ताधारी दल में सेंधमारी के बाद भी पार्टी से कहां चूक हो गई। आइए जानतें हैं पांच मुख्य वजह-

ध्रुवीकरण की रणनीति हुई फेल

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण को बड़ा मुद्दे के रूप में देखा गया। बीजेपी लगातार ममता दीदी और टीएमसी पर तुष्टीकरण का आरोप लगा रही थी। भाजपा अपनी हर रैली व सभा में जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाती रही। फिर तृणमूल भी इससे पीछे नहीं रही। बनर्जी ने सार्वजनिक मंच पर चंडी पाठ किया। फिर अपना गोत्र बताया और हरे कृष्ण हरे हरे का नारा भी दिया। कहा जा रहा था कि बंगाल के हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए बीजेपी का दांव उनके पक्ष में जाएगा, लेकिन उल्टा हो गया। शीतलकूची फायरिंग और भाजपा नेताओं के बयान ने मुस्लिम वोट को एकजुट किया। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बंगाल में जमीनी पर राजनीतिक ध्रुवीकरण देखने को मिला है।

मुख्यमंत्री चेहरे का नहीं होना

इस चुनाव में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में थी। लेकिन ममता दीदी के बराबार कोई नेता या मुख्यमंत्री के चेहरा नहीं होना पार्टी के लिए सबसे बड़ी कमजोरी बना। बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने भी कई दफा इस पर चिंता जाहिर की थी। पार्टी ने पूरा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा।

बाहरी नेताओं पर भरोसा

लोकसभा चुनाव में 19 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी के लिए बंगाल विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा युद्ध था। जिसके लिए उसे राज्य के जमीनी और बड़े चेहरे चाहिए थे। इसके लिए पार्टी ने दूसरे दलों में सेंधमारी की और तृणमूल के कई बड़े नेताओं को अपनी तरफ किया। इनमें सबसे बड़ा नाम सुवेंदु अधिकारी है, जो ममता के करीबी रहे। बीजेपी ने कहा था कि दो मई तक टीएमसी पूरी तरफ साफ हो जाएगी। वहीं सीएम बनर्जी ने भाजपा पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाया था। ममता ने इस तरह प्रोजेक्ट किया कि उनके अपनों ने उन्हें धोखा दिया क्योंकि वह बेईमान थे। विश्लेषकों का कहना है कि दीदी को इस दांव का बड़ा फायदा मिला।

अपनों नेताओं को किया नाराज

बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जमीनी मजबूती के लिए बीजेपी ने दूसरे पार्टियों के नेताओं को अपने पाले में लिया। साथ ही बड़े पैमाने पर टिकट भी दिए। इसके चलते भाजपा ने अपने नेताओं से नाराज कर दिया। टिकट बंटवारे के समय बंगाल भाजपा यूनिट में असंतोष की खबरें भी सामने आई। कई जगह भाजपा का कार्यालय में तोड़फोड़ हुई।

मौन वोटरों ने नहीं दिया साथ

भाजपा को उनके मौन वोटरों ने वोट नहीं दिया। दरअसल बिहार चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की महिलाओं को बीजेपी का साइलेंट मतदाता बताया था। लेकिन बंगाल में पार्टी का यह वोटबैंक काम नहीं आया। इसकी मुख्य वजह मानी जा रही है कि पीएम का ममता को बार-बार दीदी ओ दीदी कहकर संबोधिक करना महिलाओं को पसंद नहीं आया। तृणमूल ने इसे मुद्दा बना लिया।

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