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Umaria: दिनदहाड़े हुई साढ़े पांच लाख की लूट, उमरिया मुख्यालय का है मामला

उमरिया,भास्कर हिंदी न्यूज़/ उमरिया मुख्यालय में दिनदहाड़े एक व्यक्ति से साढे 5 लाख की लूट हो गई है, जिसकी विवेचना में पुलिस जुट गई है।जिला मुख्यालय में जमीन की रजिस्ट्री कराने आए दो व्यक्तियों से अज्ञात बदमाशों द्वारा लाखों रुपये की लूट का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस संबंध के अनुसार राजेंद्र प्रसाद पिता कामता प्रसाद दुबे निवासी पिपरिया और नत्थूलाल बैगा निवासी ग्राम छोटी पाली एक जमीन की रजिस्ट्री के लिए साढ़े पांच लाख रुपये स्टेट बैंक से निकलवाने के बाद बाइक पर सवार होकर कैम्प मोहल्ले मे अखाड़ा के पास पहुंचे थे। बताया गया है कि जैसे ही नत्थूलाल ने बाइक की डिक्की से पैसों का थैला निकाला। पीछे से मोटरसाइकिल पर आए दो बदमाशों ने उसे छुड़ा लिया और देखते ही देखते आंख से ओझल हो गए। यह सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि राजेन्द्र और नत्थू कुछ समझ ही नहीं पाए। फरियादियों ने तत्काल घटना की सूचना थाना कोतवाली में दी। पुलिस ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है।

अनुमान के मुताबिक बदमाश बैंक से ही राजेंद्र प्रसाद और नत्थूलाल बैगा की रेकी कर रहे थे। बताया गया है कि पैसा निकालने के बाद नत्थूलाल स्टेशन चौराहा दाढ़ी बनवाने गए थे। जहां से शाम करीब 3 बजे वे कैम्प स्थित अधिवक्ता वसीम अंसारी के घर आ रहे थे, पर इससे पहले ही उनके सांथ यह लूट हो गई।

फरियादियों ने पुलिस को जो कहानी बताई है वह कम दिलचस्प नहीं है। फरियादी राजेन्द्र प्रसाद दुबे ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नत्थूलाल ने उनसे जमीन खरीदने के लिए पैसे मांगे, जिस पर उन्होंने उसे साढे पांच लाख रुपये नगद बैंक से निकाल कर उसे दे दिए। सवाल उठता है कि राजेन्द्र ने नकेवल नत्थूलाल को पैसे दिए वह रजिस्ट्री भी करवाने भी पहुंच गया। इतना ही नहीं लूट के बाद वहीं फरियादी भी बन गया।

सूत्रों का दावा है कि पिपरिया से लगी ग्राम पंचायत बिलाईकाप स्थित प्रेमबाई की जमीन दरअसल राजेन्द्र प्रसाद द्वारा नत्थूलाल के नाम पर खरीदी जा रही थी। अब राजेन्द्र प्रसाद फरियादी, क्रेता या फायनेंसर हैं, इसका खुलासा तो जांच के बाद ही हो सकेगा। दरअसल जिले मे आदिवासियों की जमीनों को हथियाने का गोरखधंधा लंबे समय से चल रहा है। इसके लिए कलेक्टर से अनुमति लेना अनिवार्य है, परंतु इस कार्रवाई मे देरी लगती है। लिहाजा भूमि पहले अपने ही किसी आदिवासी के नाम रजिस्ट्री करवा ली जाती है। उसके बाद धीरे-धीरे अनुमति का जुगाड़ लगाने का प्रयास शुरू हो जाता है। 

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