Ration Mafia:digi desk/BHN/ जिले में खाद्य अधिकारी आते रहे और जाते रहे, लेकिन राशन माफिया भरत दवे का दबदबा हमेशा कायम रहा। जो भी अधिकारी आते, दवे उनसे साठगांठ कर राशन भंडारों में अपनी सत्ता चलाता रहता था। जब भी कोई नया अधिकारी आता या खाद्य अधिकारियों को कोई जरूरत होती, वे दवे को ही बताते थे। दवे सभी राशन भंडार संचालकों से उगाही करके अधिकारियों तक पहुंचाता रहता था।
यह सब गरीबों के राशन की कालाबाजारी की कीमत पर किया जाता। राशन की कालाबाजारी होती रहती और खाद्य अधिकारी व निरीक्षक उस तरफ अपनी नजर नहीं डालते थे। यही कारण था कि अधिकारी भी मजे में रहते और दवे का कारोबार भी निर्बाध चलता रहता। दवे का यह साम्राज्य करीब 20 साल से चल रहा है। नए भंडार खोलने और उनको खाद्यान्न का आवंटन कराने में भी दवे की महत्वपूर्ण भूमिका रहती।
एक तरह से दवे राशन भंडार संचालकों का सरगना बन गया था। इनमें धीरे-धीरे प्रमोद दहीगुड़े भी शामिल होता गया। खाद्य अधिकारी दवे और दहीगुड़े के राशन भंडारों को खाद्यान्न का अधिक आवंटन कराते, जिससे उनका हिस्सा भी बराबर बना रहता था। जो भंडार संचालक दवे के हिसाब से नहीं चलते थे, उनको खाद्य अधिकारी भी ठीक से आवंटन नहीं करते थे।
कांग्रेस का आरोप- भाजपा से जुड़े राशन माफिया को बचा रहा प्रशासन
प्रशासन द्वारा राशन माफियाओं को रासुका में निरुद्ध किए जाने की कार्रवाई पर भी विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि संपत्ति ढहाने से लेकर रासुका लगाने में सरकार और प्रशासन उन माफियाओं को बचा रहे हैं जो भाजपा से जुड़े हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने गुरुवार को जारी इंदौर जिला प्रशासन के आदेश पर सवाल खड़ा किया।
सलूजा के अनुसार दो दिन पहले कलेक्टर ने खुद पत्रकार वार्ता लेकर तीन कालाबाजारी और घोटाले में तीन राशन माफियाओं के नाम उजागर किए थे। इनमें भरत दवे, श्याम दवे और प्रमोद दहीगुड़े शामिल हैं। बाद में प्रमोद दहीगुड़े के संघ की गणवेश में फोटो सामने आए। गुरुवार को रासुका का आदेश जारी हुआ तो उसमें भी प्रमोद दहीगुड़े का नाम शामिल नहीं था। साफ जाहिर हो रहा है कि शिवराज सरकार अपनी विचारधारा से जुड़े माफियाओं को बचाने में जुटी है।