high court news, digi desk/BHN/ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य शासन को झोलाछाप मामले में नए सिरे से स्टेटस रिपोर्ट पेश करने कहा है। जिसमें यह साफ करना होगा कि प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) को जारी दिशा-निर्देश का किस हद तक पालन सुनिश्चित हुआ। मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी।
रिपोर्ट में सिर्फ आंकड़े दर्शाए
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी समाजसेवी ऋषिकेश सराफ की ओर से अधिवक्ता परितोष गुप्ता ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पूर्व निर्देश के पालन में राज्य शासन की ओर से जो स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, वह महज रस्मअदायगी प्रतीत होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके जरिये सिर्फ आंकड़े दर्शाए गए हैं। कायदे से जबलपुर सहित राज्य के विभिन्न जिलों में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी किस तरीके से पूरी की, इसका विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। झोलाछाप का मामला बेहद गंभीर है। लिहाजा, इसे लेकर किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए।
झोलाछाप में फैली घबराहट
जनहित याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जून, 2020 में यह मामला हाई कोर्ट पहुंचने के साथ ही जिम्मेदार अमलों ने अपने स्तर पर कार्रवाई तेज कर दी। इसी के साथ जबलपुर सहित प्रदेश के अन्य जिलों के झोलाछाप में घबराहट फैल गई। वे अपने बचाव में तरह-तरह की तिकड़म भिड़ाने लगे। वर्तमान में आयुर्वेद की आड़ में केंद्र व राज्य शासन के समक्ष स्वयं को पीड़ित करार देकर कार्रवाई की गाज से बचने की जुगत भिड़ाई जा रही है। हाई कोर्ट ने पूरा मामला समझने के बाद जनहित याचिकाकर्ता को इंटरवीनर के आवेदन के संदर्भ में अपना लिखित जवाब प्रस्तुत करने स्वतंत्र कर दिया है।