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ये हो क्या “रिया” है !

मुंबई की मायानगरी में इन दिनों एक अजब तमाशा चल रहा है। इस तमाशे की पटकथा क्योंकि पेशेवर लेखकों की बजाए नौसिखिये नेता-नुमा छुटभैयों ने लिखी थी इसलिए फ्लॉप हो गई मगर इसके चलते राजनीति और राजनेताओं का स्तर गटर से भी नीचे चला गया है। मुंबई विशुद्ध पैसेवालों की सैरगाह है इसलिए यहाँ आज से नहीं बरसों से अपराध और अपराधियों का दबदबा रहा है। सिनेमा उद्योग भी कम समय में ज्यादा पैसा बनाने की मशीन है इसलिए उसमें इनकी दखल स्वाभाविक है। मगर नब्बे की दहाई तक इनकी दखल सीधी नहीं होती थी। मुंबई धमाकों के बाद जब डी-गैंग ने दुबई के रास्ते पाकिस्तान में पनाह ली तो अपनी दुकान चलाने के लिए उसने देशी सफ़ेदपोशों का आसरा लिया और उनके जरिए राजनीति में भी अपनी पैठ बना ली। जाहिर है इसका असर बॉलीवुड पर भी पड़ा और वहाँ भी उनके खैर-ख्वाह बने जिन्हें उनके जरिए सरलता से फिल्म बनाने के लिए बोरों में पैसे मुहैया हो जाते थे। इसके बदले में कभी-कभार वे शबाब और महफिलें जुटा देते थे। यू-ट्यूब पर ढेरों वीडियो मिल जाएंगे जिसमें ऐसी महफिलें और उनमें बाहुबलियों का रुआब नुमाया है।

अब जब पॉकेटमारों की पहुँच सितारों तक होने लगे तो मुंबई पुलिस की कैसे न होती तो पुलिस कल्याण के कार्यक्रमों में सितारों की हाजिरी लगने लगी और धीरे धीरे कुछ लोग बहुत पहुँच वाले बन गए। पैसा, ताकत और देह तीनों की सहायता से एक काकस सा बन गया जिनकी निकल पड़ी। मगर शोहरत और ताकत के नशे में मदहोश महफिलें जल्दी ही इनसे ऊब गईं और फिर हल्के नशे की जगह ड्रग्स का प्रवेश हुआ। अब क्योंकि यह देह व्यापार के बाद विश्व का सबसे फलता-फूलता और घनघोर फायदे का धंधा है सो बहुतों की निकल पड़ी। ऐसे में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ी जो स्टारडम के परदे के पीछे छुप सकें और सहजता से माल की बिक्री कर सकें। इसके लिए ऐसे सितारे एकदम फिट होते थे जो खुद इनके ग्राहक हों तो एक – पर – एक – फ्री के चलते मंडली के स्थायी सदस्य बने रहते थे। अब तक तो सब सही चल रहा था मगर पहले दिशा साल्यान और फिर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत और उस पर मुंबई पुलिस के प्रायोजित ड्रामे ने इस जग-जाहिर गोरखधंधे के चेहरे पर पड़ी वो झीनी नकाब हटा दी है जिसके चलते यह तमाशा तथाकथित स्कॉटलैंड यार्ड के टक्कर की पुलिस के हाथ से अब केन्द्रीय जांच एजेंसियों के पाले में आ गया है। देखना यह है कि अगर भाजपा से तलकशुदा शिवसेना अगर कांग्रेस के साथ इददत की अवधि पूरी करके अगर वापस भाजपा के पास लौट जाती है तो भी क्या जांच जारी रहेगी, या फिर आरुषि और सुनंदा पुष्कर कांड जैसा ही कुछ देखने मिलेगा ?

सीए सिंघई संजय जैन

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