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विजयादशमी भारत के जन-जन का विजय पर्व, इसे आत्मसात करें

विशेष संपादकीय

ऋषि पंडित
(प्रधान संपादक)

भारतीय संस्कृति व सनातन के लिए विजयादशमी अर्थात विजयपर्व, आसुरी शक्ति और सभ्यता पर दैवी संस्कृति का विजयोत्सव है। हमारे इतिहास में इसे रावण पर राम की विजय के पर्व के रूप में मान्यता है। भारत का जन-जन आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात रावण पर राम की विजय को ही विजयपर्व मानता है। यह शायद इसलिए कि अन्य विजय सत्ता के युद्ध हैं। इनका लक्ष्य एक को हराकर अन्य की सत्ता को प्रतिस्थापित करना है। उनमें प्रतिशोध का भाव तो है ही, सत्ता का राजसिक अहंकार भी है, जबकि राम की विजय सत्य और नैतिकता के लिए कृत संघर्ष की विजय गाथा है। राम त्रिलोक विजयी रावण की उन्मत्त, अत्याचारी और लोलुप राजसत्ता को अत्यंत साधारण जीवों के बल पर चुनौती देते हैं। सादगी, शुचिता, मर्यादा और नैतिकता के बल पर आसुरी यांत्रिक सभ्यता पर विजय अर्जित करते हैं।

यह राजा की नहीं राम की विजय है, संस्कार की विजय है, इसलिए वास्तविक विजय है। यह अधिनायकवाद पर जनसत्ता की विजय का महान पर्व है, क्योंकि चक्रवर्ती राज्य को त्याग कर वल्कल वेश में भी प्रसन्न रहने वाले राजपुत्र अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक लोक जीवन के बीच सामान्य जन की भांति विचरण करने वाले, शबरी के जूठे बेर खाने वाले और अहिल्या का उद्धार करने वाले श्रीराम ने रावण की लंका जीती, किंतु पुष्प की भांति अर्पित भी कर दी उस विभीषण को जिसने धर्मद्रोही भाई का विरोध कर धर्ममय जन सत्ता का ध्वज उठाया था।

कुछ लोग विजयादशमी को आश्विन नवरात्र से जोड़कर भगवती दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के माध्यम से दैवी संस्कृति की विजय के रूप में देखते हैं। देवी ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। विजयादशमी के दिन कुछ जगहों पर शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है। यही वह दिन है जब पांडवों का अज्ञातवास पूरा हुआ था और अर्जुन ने शमी वृक्ष की कोटर से गांडीव सहित अपने दिव्यास्त्र निकालकर कौरव सेना का सामना किया था। विराट पुत्र उत्तर के सहयोगी की भूमिका में भीष्म सहित समस्त कौरव सेना को परास्त किया।

दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान खेत में फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की कोई सीमा नहीं रहती। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
विजयादशमी एक ऐसा पर्व है, जो हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। विजय का हिंदू अर्थ है स्वधर्म और स्वदेश की रक्षा, न कि युद्ध कर दूसरों की भूमि, धन और स्वत्व का अपहरण। यही निहितार्थ है विजयपर्व विजयादशमी का। ऐसी विजय में किसी का पराभव नहीं होता, राक्षसों का भी नहीं हुआ, केवल रावण के अहंकार का संहार हुआ।

अधर्म पर धर्म की विजय के इस महापर्व विजयादशमी पर हम सबको भी अपने भीतर बैठे दस राक्षसों का संहार करने की प्रेरणा लेनी चाहिए। यह इतना आसान तो नहीं है परंतु सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा एवं अपनी धर्म संस्कृति के प्रति आस्था व कर्तव्य परायणता से धीरे-धीरे हम इन राक्षसों का नाश करने में सफल होंगे।

आप सभी को भास्कर ‘हिंदी न्यूज परिवार” की ओर से विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

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