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जीवन का सफर..!

                                              रचनाकार: पंडित योगेश गौतम

मैं पग दो पग जब चलता था , अपनो से रोजाना मिलता था !
अब लंबी सैर में जाता हूं, अपनो को सोता पाता हूं!!
बढ़ा जब से माया का जंजाल, हम हुए अपनो से कंगाल !
फिर भी होता यही गुमान, लंबी गाड़ी और बड़ा मकान!!
मैं पग दो पग जब चलता था………
दिल की बात न कोई सुनता है, हर रोज प्रवचन मिलता है!
दिल को यही समझाता हूं, मैं अकेला नही जो ये कथा सुनाता हूं!!
मैं चला था अपनों से यह वादा करके, आऊंगा फिर इस छत के नीचे!
अब वही छत हमे धिक्कारती है, अपनों में अकेला पाती है!!
मैं पग दो पग जब चलता था…..
बच्चे भी अब नसीहत देते है, दादा दादी को रोते है!
मन ही मन मैं रोता हूँ, अपनो को सोंचकर मैं सोता हूं!!
टूट गयी जब जीवन की आस , किसे बताऊ ये सारा फसाद!
भूंख नही ये पेट की थी, ये तो मेरी तृष्णा थी!!
मैं पग दो पग जब चलता था……
अब पछतावा करता हूं, अपनो से नही लड़ता हूँ!
सबका दर्द समझता हूं, दर्द अपना छुपाकर रखता हूँ!!
अब फिर से मैं पग दो पग ही चलता हूं, अपनो से रोजाना मिलता हूँ!!

                                                  

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