विशेष संपादकीय
22 मार्च यानि बुधवार का दिन हम सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन जहाँ 110 साल बाद अद्भुत और अनूठे संयोग में चैत्रनवरात्रि यानि शक्ति स्वरूपा माँ भगवती की साधना का पर्व शुरू हो रहा है तो वहीँ हिन्दू नवसंवत्सर 2080 का शुभारंभ होने जा रहा है। गुड़ी पड़वा का पर्व भी हमारी देहरी पर मानव जीवन में उम्मीदों का “उजास” लिए खड़ा है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नवसंवत्सर का आरंभ होता है। यह हमें हमारी संस्कृति से परिचित कराने और उसकी महत्ता रेखांकित करने का भी अवसर उपलब्ध कराता है। इसी दिन को ब्रम्हांड की उत्पत्ति का दिन भी माना जाता है।
सृष्टि की उत्पत्ति के प्रथम दिन से ही भारतीय संस्कृति में नववर्ष मनाने की परंपरा है। भारतीय नवसंवत्सर रात भर जागकर नाचने-गाने का अवसर नहीं है। वास्तव में यह उत्सव प्रकृति के साथ एक समन्वय स्थापित कर वर्ष भर के लिए निर्बाध जीवन की कामना है। इसीलिए यह संकल्प लेने और साधना करने का दिन है।
कालगणना के आकलन का आधार अत्यंत व्यापक है। यह सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की गति के आकलन पर आधारित है।पंचांग तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग सूचकों के साथ तैयार होता है। इसी प्रकार प्रत्येक माह की अवधि भी नक्षत्र की कालावधि से निर्धारित होती है। वास्तव में इसीलिए इसमें त्रुटि की आशंका न्यून होती है। यह कालगणना वैज्ञानिक भी है और प्रामाणिक भी। ऐसे में इसका स्वागत करते समय हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि यह हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक थाती से परिचित कराने और उसे सहेजने का भी अवसर उपलब्ध कराता है। इस दिन सूरज की स्वर्णिम किरणों सभी को स्नेह से सहलाते हुए मानो जीवन के उस अबूझ रहस्य को समझने का संकेत करती हैं, जिसके लिए हम पृथ्वी पर आए हैं। भोगमय जीवन से अलग हटकर उसके वास्तविक मर्म को जानने का पर्व बन जाता है यह उत्सव। जीवन की परिपूर्णता पर बल देने के कारण नवसंवत्सर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थो को भी सिद्ध करने का अवसर बन जाता है।
चैत्र की गंध वाही वायु के साथ हर चित्त उन्मन होता है और विकल हो उठता है अपने अनंत प्रियतम से मिलने को। इसीलिए विरह की पीर कुछ अधिक ही टीस देने लगती है चैत्र मास में। पूरी प्रकृति में मिलन और सौंदर्य की एक आतुरता दिखाई देने लगती है। यह ऋतु माधव की ऋतु है। चंद्रमा की कलाएं अपनी शीतलता और स्निग्धता में ईश्वरीय चिंतन के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण का सृजन करने लगती हैं। परब्रह्म की प्रकृति स्वरूपा शक्ति आह्लादित होती है। इसीलिए हम शक्ति की आराधना से इस नवसंवत्सर का आरंभ करते हैं।
मानव कल्याण की बातें समझाने आता है नवसंवत्सर। इसीलिए नवरात्र के रूप में शक्ति के जागरण का महापर्व भी है यह उत्सव। प्रकृति के सौंदर्य और साम्यावस्था में अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण और जीवन के प्रति नवस्फुरण उद्देश्य होता है इस नवसंवत्सर में। इसमें हमारे मंत्र द्रष्टा ऋषियों की वैज्ञानिक सोच और दृष्टि अंतर्निहित थी। नवसंवत्सर को वैश्विक मानवीय मूल्यों और सत्य के साक्षात्कार के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करना चाहिए। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नवसंवत्सर भारत की कालगणना की समृद्ध परंपरा को भी रेखांकित करता है।
आइये, इस हिन्दू नव वर्ष में आपसी कटुता,वैमनस्य और जीवन में चल रही निराशा व हताशा को ह्रदय से निकाल कर स्वयं को नव संवतसर की नवीन रश्मियों को समर्पित कर दें जो हमे वर्ष भर उल्लास, उमंग एवं विकास के मार्ग पर चलने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहें।
“भास्कर हिंदी न्यूज़” परिवार की ओर से आप सभी को चैत्र नवरात्रि, हिन्दू नववर्ष एवं गुड़ी पड़वा की अनंत आत्मिक शुभकामनाएं।