पन्ना,भास्कर हिंदी न्यूज़/ पन्ना में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंंदिर जन आस्था का केंद्र है। इस भव्य और अनूठे मन्दिर में रंगों का पर्व होली वृन्दावन की तर्ज पर मनाया जाता है। पूरा मन्दिर गुलाल और केसर के रंग के साथ-साथ फूलों की पंखुड़ियों से सराबोर नजर आता है। मंदिरों के शहर पन्ना में हर तीज त्योहार बड़े ही अनूठे और निराले अंदाज में मनाया जाता है। रंगों के पर्व होली पर यहां के सुप्रसिद्ध श्री प्राणनाथ जी मंदिर की छटा देखते ही बनती है। चैत्र मास की पंचमी की पूरी रात जहां ढोलक और मजीरे कि थाप के साथ फागों के स्वरलहरी गायन चलता है। तो वही छठ की सुबह श्री बगला जी मंदिर दरबार हाल में श्रद्धालु सुंदरसाथ की खांसी भीड़ रहती है। जिसमें सोलह सिंगार किए महिलाएं, रंग बिरंगी पोशाकों में बच्चे- बड़े सभी इस फागोत्सव में शामिल होते हैं। और एक दूसरे को गुलाल लगाकर गले मिलते हैं। साथ ही मंदिर के पुजारी इस पावन उत्सव पर चांदी की पिचकारी से केसर के रंग और फूलों की पंखुड़िया को डालते हैं तो माहौल सुगंधित हो जाता है।
रिझाने के लिए घाघरा चुनरी ओढ़ कर करते हैं नृत्य
श्री 5 पद्मावती पुरी धाम पन्ना होली का अनोखा ही रंग दिखता है। मालूम हो कि यहां होली पर्व के उपलक्ष में खट छप्पर का मोतियों से जुड़ा हुआ विशेष झूला जिसमें श्रीजी की सेवा आती है। यह झूला सिर्फ होली पर ही सेवा में आता है। जिस विशेष झूले में अपने श्रीजी को निहारने और यहां के होली के रंग में सहभागिता करने पूरे देश से श्रद्धालु लोग पन्ना पहुंचते हैं। परंपरा अनुसार छठ की सुबह फाग गायन करने वाले कुछ विशेष युवकों को श्री 108 प्राणनाथ जी मंदिर ट्रस्ट की ओर से घागरा चुनरी दी जाती है जिसको पहन ओढ़ कर ढोलक की थाप और मजीरों की सुमधुर ध्वनि के बीच श्रीजी के सामने सखी वेश में युवक नृत्य कर उन्हें रिझाने हैं। तो वही महिलाओं की टोली भी भक्ति में लीन जब ढोलक की थाप पर फाग और होली गीत गाते हुये गुलाल उड़ाकर नृत्य करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान बृज की होली अपनी सखियों के साथ यही खेल रहे हो। यह उत्सव पंचमी की रात 10 बजे से सोमवार की सुबह 10 बजे तक चलता रहा। यह अनूठी परंपरा श्री प्राणनाथ जी मंंदिर में लगभग 4 सौ वर्ष से चली आ रही है, जो आज भी कायम है। और इस कार्यक्रम में शिरकत करने प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।
पूरा मंदिर प्रांगण फूलों की पंखुड़ियों से महकता है
यहां पर रंगों के पर्व होली की पूरे पाँच दिनों तक धूम रहती है। हालांकि परंपरा अनुसार यहां पर होली की दंड स्थापना 1 माह पूर्व हो जाती है और तभी से होली की बाहर बहने लगती है।