Indore High Court
Indore High Court: इंदौर/ एकीकृत कर प्रणाली जीएसटी में टैक्स डिमांड या कर निर्धारण को लेकर विभाग या किसी अधिकारी द्वारा सिर्फ ईमेल पर या भौतिक रूप से भेजा गया नोटिस कानूनी रूप से वैध नहीं माना जाएगा। ऐसे किसी भी नोटिस को कानूनी रूप से मान्यता तब ही दी जाएगी जब ऐसे नोटिस को करदाता को भेजने के साथ-साथ जीएसटी के पोर्टल पर भी अपलोड किया गया हो। म.प्र हाईकोर्ट ने करदाताओं के पक्ष में यह फैसला दिया है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि कर निर्धारण के प्रकरणों में पारदर्शिता बढ़ने के साथ यह निर्णय व्यापारियों को भी राहत देने वाला है।
आकाश गर्ग विरुद्द स्टेट ऑफ मप्र याचिका क्रमांक 16117-2020 पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाया है कि भले ही किसी करदाता को जीएसटी की मांग या कार्रवाई से जुड़ा कोई नोटिस अधिकारी या विभाग द्वारा व्यक्तिगत रूप से या ई-मेल के माध्यम से भेजा गया है, लेकिन ऐसे नोटिस को मान्य तब ही माना जाएगा जबकि उसे जीएसटी के आधिकारिक पोर्टल पर भी अपलोड किया जाए। याचिकाकर्ता को विभाग ने 10 जून को शोकॉज नोटिस दिया था। जवाब नहीं देने के आधार पर अगली कार्रवाई करते हुए विभाग ने करदाता पर 18 सितंबर को कर की मांग निकाल दी थी। उस नोटिस के आधार पर कर निर्धारण की प्रक्रिया व विभाग आगे की कार्रवाई कर रहा था। टैक्स प्रेेक्टिशनर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सीए विक्रम गुप्ते के अनुसार याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सीजीएसटी एक्ट में शोकॉज नोटिस और किसी भी आदेश के लिए एक तय प्रक्रिया उल्लेखित है।
नियम 141(1) के तहत तय प्रक्रिया का विभाग ने पालन नहीं किया और जीएसटी पोर्टल पर नोटिस और आदेश को अपलोड नहीं किया गया। सीए गुप्ते के अनुसार दरअसल जीएसटी कर प्रणाली पूरी तरह ऑनलाइन है। जीएसटी में रजिस्ट्रेशन से लेकर रजिस्ट्रेशन कैंसल और रिटर्न जमा करने तक की प्रक्रिया जीएसटी के पोर्टल के माध्यम से ही होती है। इसका उल्लेख भी एक्ट में है। हाई कोर्ट का यह निर्णय कर निर्धारण के आदेशों और विभाग की कार्रवाई में पारदर्शिता के लिए अहम है। इससे मनमाने कर निर्धारण की शिकायतें भी कम हो सकेंगी।