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Jivitputrika Vrat: जितिया से जुड़ी जानकारी यहां देखें, पूजा विधि के साथ शुभ मुहू्र्त और कथा

Jivitputrika Vrat 2022: digi desk/BHN/ नई दिल्ली/ जीवित पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रत में से एक है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत शुरू होता है। तीन दिन तक चलने वाला यह व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है। इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रहकर संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। देश के अलग- अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत नाम से जाना जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत के एक दिन पहले दिन नहाए खान होता है। इसके बाद दूसरे दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं सेंघा नमक और बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्ध तरीके से बना कर खाती हैं।

जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त

17 सितंबर को नहाय-खाय होगा। 18 सितंबर को व्रत रहेगा। शाम को जिउतिया का पूजन होगा। पंचांग के अनुसार 18 सितंबर की शाम 06.05 बजे से रात्रि 07.33 मिनट तक कुंभ लग्न है। इसमें पूजन करना शुभ माना जाता है। वहीं 19 सिंतबर को पारण के मुहूर्त सुबह 05.57 मिनट है।

 व्रत कैसे करें

सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इस पूजा के लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें। इस व्रत के जौरान मिट्टी में गाय का गोबर मिलाकर उससे चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इन दोनों मूर्तियों के माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। तीसरे दिन व्रत का पारण करने के बाद अपने हिसाब से दान और दक्षिणा भी देना चाहिए। मान्यता है कि व्रत का पारण सूर्योदय के बाद गाय के दूध से ही करना चाहिए।

व्रत कथा

जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में गुरु दोणाचार्य की मौत के बाद उनका पुत्र पागल हो गया था और उनकी मौत का बदला लेने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु मृत हो गया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया था। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। इसी समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।

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