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डिग्री कालेज में पढ़ाई के नाम पर निल बटा सन्नाटा! राजनीति का अखाड़ा बना परिसर

मानदेय बढ़ाने की मांग पर डटे अतिथि विद्वानों में खेमेबाजी, नियमित प्रोफेसर कर रहे आग में घी का काम

 

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज/ छात्रों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाला स्थानीय स्वशासी महाविद्यालय गहरा नाला इन दिनों अनुशासनहीनता के लिए चर्चा में बना हुआ है। इस महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के कई राजनीतिक धड़े तो हैं ही बल्कि अनुशासन की सीख देने वाले प्राध्यापक खुद दो धड़ों में बंटे हुए हैं। दो धड़ों में बंटे प्राध्यापक छात्रों को पढ़ाने के बजाय रस्साकशी के खेल में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि प्राचार्य की चेतावनी के बाद भी अतिथि विद्वान मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल खत्म करने की घोषणा के बाद मंगलवार को फिर से मोर्चे पर अड़ गये।

उल्लेखनीय है कि बीते पांच दिनों से लगातार मानदेय वृद्धि की मांग को लेकर कामबंद हड़ताल पर डटे तकरीबन 35 अतिथि विद्वानों ने प्रभारी प्राचार्य के मानदेय बढ़ाने के आश्वासन के बाद सोमवार को अध्यापन का कार्य शुरू करने की तैयारी कर ली थी। प्रभारी प्राचार्य ने सभी अतिथि विद्वानों को साफ तौर पर यह चेतावनी भी दी थी कि यदि अतिथि विद्वान कार्य पर अनुपस्थित पाये जायेंगे तो उनके मानदेय में कटौती की जायेगी तथा उन्हें अवैतनिक कर दिया जायेगा। इस बात को लेकर कामबंद हड़ताल कर रहे अतिथि विद्वान फिर भड़क उठे और मंगलवार को महाविद्यालय में स्थापित गांधी प्रतिमा के पास फिर से काम बंद कर धरने पर बैठ गये। महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा हड़ताल के दिनों में मानदये कटौती की बात पर अतिथि विद्वान खासा नाराज हैं। अतिथि विद्वान पहले से ही मानदेय में वृद्धि की मांग कर रहे थे ऐसे में हड़ताल के दौरान मानदेय में कटौती के प्रस्ताव ने आग में घी का काम किया और विद्वान कहे जाने वाले शिक्षक धरने पर उतारू हो गये।

विवाद की जड़

अतिथि विद्वानों के लिए असंतोषजनक यह है कि जिले के सबसे बड़े सरकारी महाविद्यालय में कार्य करने के बावजूद उनका मानदेय 10,500 रुपये हैं जबकि इंदिरा कन्या महाविद्यालय में अतिथि विद्वानों को तकरीबन 14000 रुपये का मानदेय दिया जाता है। यहां तक नागौद में जलद त्रिमूर्ति महाविद्यालय मे भी स्वशासी महाविद्यालय से ज्यादा अतिथि विद्वानों को मानदेय दिया जा रहा है।

दो धड़ों में बंटे अतिथि विद्वान!

गहरानाला स्थित शासकीय स्वशासी महाविद्यालय का परिसर इन दिनों खेमेबाजी का अखाड़ा बना हुआ है। सोचने वाली बात यह है कि जब अतिथि विद्वान खुद ही खेमें में बंटे हुए हैं तो उनकी मांगो पर प्रबंधन विचार क्यों करेगा। सोमवार को एक खेमें ने हड़ताल समाप्त करने की घोषणा की तो दूसरे खेमें ने मंगलवार को फिर मोर्चा संभाल लिया। सूत्रों के अनुसार अतिथि विद्वानों के खेमों में फूट डालने के का कार्य कालेज ही कुछ नियमित प्राध्यापक कर रहे हैं। प्राध्यापकों की इस जंग में छात्रों के भीतर अनुशासन के पाठ को जहां जंग लग रही है वहीं उनकी पढ़ाई को पलीता लग रहा है। गौरतलब है कि कोरोना काल में वैसे ही कालेजों में पढ़ाई के नाम पर निल बटा सन्नाटा है, और अब अतिथि विद्वानों की हड़ताल छात्रों के लिए सिरदर्द बनी हुई है।

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