कैंसर के मरीज को दो लाख रुपये की क्लेम राशि के साथ ब्याज व मानसिक परेशानी के लिए 25 हजार रुपये भी चुकाने होंगे
Mediclaim Policy: digi desk/BHN/ इंदौर/ मेडिक्लेम देने से पहले बीमा कंपनी ने अपने ही डाक्टर से बीमा लेने वाले व्यक्ति का मेडिकल परीक्षण करवाया हो तो कंपनी क्लेम के दावे को इस आधार पर खारिज नहीं कर सकती कि बीमा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारी छुपाई। इस टिप्पणी के साथ इंदौर के उपभोक्ता फोरम की जिला पीठ ने कैंसर के मरीज को दो लाख रुपये की क्लेम राशि के साथ ब्याज और मानसिक परेशानी के लिए 25 हजार रुपये भी चुकाने का आदेश दिया है।
मानपुर महू की निवासी कोमल चौधरी ने दो लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा पालिसी बजाज एलियांज कंपनी से दिसंबर 2016 में ली थी। मार्च 2017 में पेट दर्द की शिकायत के बाद जांच में उन्हें पेट का कैंसर होने की बात पता चली। उपचार के खर्च के तौर पर पालिसी के अनुरूप जब क्लेम राशि का दावा पालिसी धारक ने किया तो बीमा कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम दावा खारिज कर दिया कि बीमा लाभार्थी ने अपनी पुरानी बीमारी कंपनी से छुपाई।
साथ ही बीमा धारक पर हाइपरटेंशन और टीबी से पीड़ित होने की जानकारी नहीं देने का आरोप भी लगाया। इस पर बीमित महिला के स्वजन ने कंपनी के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में दावा लगा दिया। उपचार के दौरान महिला की 2019 में मौत भी हो गई। बाद में उपभोक्ता फोरम में केस चलता रहा।
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को तीन महीने तक कैसे छुपाया जा सकता है?
बीमा कंपनी के वकील ने फोरम में कहा कि बीमित के स्वजन उसकी मौत का भावनात्मक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। फोरम में दावा पेश करते हुए महिला के भाई और इंदौर के सीए एसएन गोयल ने वकील के तौर पर केस लड़ा। उन्होंने फोरम में कहा कि कोई भी व्यक्ति कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को तीन महीने तक इसलिए छुपाए कि उसे बीमा क्लेम हासिल करना है और उपचार नहीं कराए, यह हास्यास्पद है। बीमा कंपनी इस तरह के तर्क देकर उपभोक्ता संरक्षण विधान का उल्लंघन कर रही है।
बीमा राशि बढ़ाने के लिए बदली थी कंपनी
बीमित व्यक्ति के भाई और मामले में पैरवी करने वाले सीए एसएन गोयल के अनुसार कोमल का कई वर्षों से नेशनल इंश्युरेंस कंपनी से स्वास्थ्य बीमा था। इस बीच बजाज एलियांज कंपनी के एजेंट ने उनसे संपर्क किया। जानकारी दी कि उनका स्वास्थ्य बीमा सिर्फ 50 हजार रुपये का है। कानून उन्हें कंपनी बदलने की अनुमति देता है। ऐसे में वह अपनी पालिसी उनकी कंपनी में शिफ्ट करवा लें और दो लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा ले लें। इस पर कोमल ने पालिसी ली। पालिसी देने से पहले कंपनी द्वारा नियुक्त डाक्टर ने संबंधित की पूरी मेडिकल जांच भी की। बीमा पालिसी के दस्तावेजों में कहीं भी नहीं लिखा था कि कैंसर की बीमारी का क्लेम नहीं दिया जाएगा।
फोरम के सामने तर्क रखा कि हाइपरटेंशन का भी कैंसर जैसी बीमारी से सीधा कोई संबंध नहीं है। जब कंपनी ने खुद ही मेडिकल जांचें करवाकर बीमा दिया तो वह क्लेम देने से नहीं बच सकती। इस पर फोरम ने आदेश पारित करते 15 जुलाई तक कंपनी को बीमा पालिसी के अनुसार दो लाख रुपये। साथ ही 22 मई 2018 यानी जिस दिन क्लेम खारिज किया गया था, उस दिनांक से छह प्रतिशत ब्याज चुकाने का निर्णय भी सुनाया है। मानसिक कष्ट के लिए बीमा कंपनी को 25 हजार रुपये अलग से देने होंगे।