पन्ना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाला बाघ पी-111 नहीं रहा। गुरुवार सुबह संदिग्ध हालत में बाघ पी-111 का शव मिला है। पार्क प्रबंधन ने 12 वर्षीय बाघ की मौत की वजह बीमारी बताई है। पन्नाा टाइगर रिजर्व में इस बाघ का जन्म बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत हुआ था। इसलिए हर वर्ष 16 अप्रैल को इसका जन्मदिन मनाया जाता था।
क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट राजा बरिया कक्ष क्रमांक पी-394 में पन्ना-कटनी मुख्य मार्ग पर सड़क के किनारे बाघ का शव मिला है। पोस्टमार्टम से पता चला है कि बाघ की किडनी फेल थी। उन्होंने बताया कि बाघ के अवयवों की जांच के लिए बरेली, सागर व जबलपुर सैंपल भेजे जा रहे हैं। रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा कि मौत की वजह क्या है।
वंश वृद्धि में अहम भूमिका
यह बाघ पन्ना टाइगर रिजर्व का डील-डौल व कद में सबसे बड़ा बाघ था। इसकी एक झलक पाने को पर्यटक बेताब रहते थे। इस नर बाघ ने यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में इस ताकतवर बाघ का साम्राज्य रहा। उसने बाघिन पी- 213, पी-234 व टी-2 सहित अन्य कई बाघिनों के साथ पन्ना में बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
16 अप्रैल को मनाया जाता था जन्मदिन
जब 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू हुई। योजना के तहत बांधवगढ़ से चार मार्च 2009 को बाघिन टी-1 लाई गई। इस बाघिन का पेंच टाइगर रिजर्व से लाए गए नर बाघ टी-3 से संसर्ग हुआ। इसके बाद बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को रात्रि धुंधुआ सेहा में चार शावकों को जन्म दिया। इन्हीं शावकों में पहला शावक पी-111 था। उसका जन्मदिन हर साल 16 अप्रैल को धूमधाम के साथ मनाया जाता रहा है। बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता की कहानी इसी बाघ से शुरू हुई थी।
मां से अलग होकर कायम किया साम्राज्य
18 माह तक अपनी मां बाघिन टी-1 के साथ रहकर यह बाघ शिकार में माहिर हो गया और अपना अलग इलाका बनाकर रहने लगा। उसने अपने पिता टी-3 के इलाके तालगांव पठार पर अपना कब्जा जमाया। भारी-भरकम डीलडौल वाले इस नर बाघ का दबदबा पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में कायम रहा। आलम यह था कि कोई भी दूसरा बाघ उसके इलाके में जाने की जुर्रत नहीं कर पाता था। कुछ दिन पहले तक यह नर बाघ पन्नाा कोर क्षेत्र व अकोला बफर के जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करता रहा है।