School Education:अंबिकापुर/ उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित बलरामपुर जिले के आखिरी ग्राम धनवार स्थित प्राथमिक पाठशाला के बच्चों में कोरोना काल के दौरान पढ़ाई के प्रति गजब की रुचि देखने को मिल रही है। यहां की एक शिक्षिका ने बच्चों के ज्ञानार्जन के लिए नए-नए तरीके इजाद कर पढ़ाई को रूचिकर बनाया है। ऐसे कई शिक्षक हैं जिन्होंने कोरोना के कठिन समय में भी शिक्षा का अलख जगाए रखा, लेकिन धनवार की शिक्षिका रश्मि पांडेय के पढ़ाई के तरीके ने बच्चों के साथ अभिभावकों को भी आकर्षित किया है।
प्राथमिक शाला धनवार में पदस्थ सहायक शिक्षिका रश्मि पाण्डेय के प्रयास ने बच्चों की पढ़ाई को रूचिकर बना दिया है, रश्मि स्थानीय भाषा और प्रतीकों का प्रयोग कर बच्चों को आसानी से पशु-पक्षियों तथा वस्तुओं के नाम से परिचय करवाती है। बच्चों को भी सरलता के साथ इन प्रतीकों के माध्यम से मात्रा तथा वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। स्थानीय भाषा और प्रतीकों के संयुक्त प्रयोग से पढ़ाई को मनोरंजक रूप देने वाली रश्मि पाण्डेय ने बताया कि लाॅकडाउन के शुरूआती दिनों में सभी गतिविधियां बंद रही।
शासन से निर्देश प्राप्त होने के पश्चात आनलाईन कक्षाएं तथा मोहल्ला क्लास जैसी वैकल्पिक व्यवस्थाएं प्रारंभ की गई। बच्चों को केवल पुस्तकों के माध्यम से पढ़ाने तथा समझाने में कठिनाई होती थी ऐसे में आसपास के प्रतीकों, चिन्हों तथा स्थानीय भाषा के प्रयोग से बच्चों को वस्तुओं, मात्राओं तथा शब्द ज्ञान से परिचय करवाना ज्यादा सहज लगा। उन्होंने बताया कि चूहे को स्थानीय पण्डो भाषा में खुसरा, बिल्ली को बिलाई, कुत्ता को कुकरा कहा जाता है इसके अंग्रेजी तथा हिन्दी शब्दों की जानकारी बच्चों को दी जाती है। साथ ही कुत्ते की पूंछ को ‘उ’की मात्रा एवं चूंहे की पूंछ को ‘ऊ’की मात्रा के सदृश्य बताते हुए इसके प्रयोग की जानकारी दी। रश्मि पाण्डेय आसपास के परिवेश से पढ़ाने में ऐसे प्रतीकों एवं चिन्हों का चयन करती है ताकि बच्चों का भावनात्मक जुड़ाव होने से वे आसानी से इसे समझ पाये। सीखाने का तरीका कुछ ऐसा है जिसमें वे बच्चों को बताती है कि छोटी बच्चियां जो एक चोटी बनाती हैं वह ‘ए’की मात्रा तथा दो चोटी ‘ऐ’ की मात्रा के समान है। साथ ही छोटे-छोटे चित्रों के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाने का यह प्रयास बड़ा ही रोचक है।
आसपास के परिवेश से ही सीखते हैं बच्चे
रश्मि पाण्डेय ने बताया कि लाॅकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद थे,तभी उनके मन में ये यह विचार आया कि बच्चों को आसानी से कैसे पढ़ाया जाए जिससे उनकी रूचि भी बनी रहे और उनका बौद्धिक विकास भी हो। बच्चें अपने आसपास के परिवेश से ही सबसे ज्यादा सीखते और समझते हैं। इसीलिए मैने इन तरीकों को अपनाकर बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ किया है। ऐसे तरीकों से बच्चें भी मनोरंजक ढंग से बुनियादी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।